अभिनन्दन प्रवचन सुधा | Abhinandan Pravachan Sudha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
415
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देव हु ही, महादेव तू ही भ
देटा सारे दाप को, नारि हरे भर्तार ।
इस परिय्रह कै कारणे, अनर्थ हु अपार +
भाई, संसारे यदिदेखा जाय तोकप जौर वेटे का सम्बन्ध सबसे
वड़ा है । परन्तु लोभ कै वशीभ्रूत होकर बेटा वाप को मार देता है औौर बाप
बेटे को मार देता है । पति अपनी परनी को और पत्नी अपने पत्त को मार
देती है । इस प्रकार संसार में इस परिग्रह के कारण आज तक अपार अनये
हुए हैं 1
और भी देखो--प्रातत: काल चार वजे से लेकर रात्रि के १० वजे तक एक
नौकर जो मालिक की भनेक प्रकार की वाते सुनता हैं, गालियों को सहन
करता है, उसके साथ देश-विदेश में जाता है और नाना प्रकार के संकटों को
उठता हैं, बह सच लोभ के पीछे ही तो है । यह भौतिक मकान तो लोहे-पापाण
के थंभोकै नाधार पर ठहरता है । परन्तु लोभ का महल विना थंभों के अधर
ही आकाश में निर्भित होता है । मनुप्य माकाश का पार भले ही पा लेये,
परन्तु लोभ के पार को कोई नहीं पा सकता है । अन्याय, छल, छिद्र कपट
सौर घोखा गादि यह सब कुछ लोभ ही कराता है 1
किन्तु जिसने अपने आत्मा के पद को पहिचवान लिया कि मैं तो संत्-चिदू-
आनन्दमय हं, वह फिर दन भौतिक पर पदार्थो का अभिमान नहीं करता
है । चह सोचता है कि मेरा पद तो सर्वोपरि है, उसके सामने संसार के बड़े से
वड़े भौतिक पद भी तुच्छ हैं--नगण्य हैं, ऐसा समझ कर वह् किसी भी सांसा,
रिक वस्तु का अभिमान सही करता है! यहां तक फि वह् फिर अपनी जाति
का, कुल का, विद्या का, वल का और शरीर-सौँदर्थं यादि काभी अभिमान
नहीं करता है ।
स्वभाव क्यों छोड़ें ?
एक वार् एक भाई एक महात्मा के प्रात पहुंचा गौर उसनै पृष्ठा ~
महाराज, मुझे दुःख क्यों होता है, भय क्यों लगता है और नाना प्रकार की
चिन्ताएं क्यों सताती है ? इसका क्या कारण है ? कोई ऐसा उपाय बतलाइये
. कि जिससे में इन सबसे विमुक्त हो जाऊं ? गौर येरी आत्मा में शान्ति झा
जाय ? महात्मा ने कहा--देख, मैं एक उपाय चतलाता हूं । यदि तू उस पर
जमल करेया, तौ जवस्य शन्ति को प्राप्त दोगा 1 वह उपाय यहु है कि “जो हूं,
तो मैं हूं, और मेरे से बढ़कर संसार में और कोई नही । जैसा मैं काम कर
सकता हूं, नैसा दूसरा कोई नहीं कर सकता ! वस यह विचार मन में ले झा ।
*” उसने
फिर तुझे कोई चिन्ता नही सतावेगी ।” उसने सहात्साजी की यह चात अपने
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