टैगोर का साहित्य दर्शन | Taigor Ka Sahitya Darshan

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Taigor Ka Sahitya Darshan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ ही समय वस्तुमय, शितमय श्रौर सौन्दयेमय है । वृक्ष इसीलिये शरानन्द देता है । इसीलिये वक्ष विर्व रौर पृथ्वी का टेश्वयं है । वक्ष में च्रीके साथ काम का, काम के साथ खेनने का, कोई चिच्छेद नही है, इसीलिये हयी प्रकृति मेँ चित्त विराम पाता है--विश्रामका पूणं रुप दिखाई देता है \ वह रूप काम के विरुद्ध नहीं है, वस्तुतः वह काम ही सम्पूर्ण रूप है, वह्‌ क्म का सम्पूणं रूप श्रानन्द रूप है, सौन्दर्य रूप है । वह काम है, किन्तु लीला भी है, कारण काम श्रौर विश्राम एक साथ होते है । सृष्टि की समग्रता की घारा सनुप्य के मीतर प्राकर टूट गयी है । इसका प्रधान कारण यह है कि मनुष्य की श्रपनी एक इच्छा है, जगत की लीला के साथ वह्‌ समग्र ताल पर नही चलता) चिद्व की ताल को वहं भ्राज भी सम्पूर्ण रूप से नहीं जान पाया है। इसीलिये वह्‌ श्रपनी सृष्टि को श्रसंस्य खप्डों में विभवत करके किसी तरह उनकी ताल ठीक कर लेता है। किन्तु इससे पूरे संगीत का रस भग हो जाता है श्रौीर विभकत खण्डो की ताल ठीक नहीं रहती 1 एक दृष्टान्त, लडको की शिक्षा । मानव सन्तान के लिये ऐसा दुःख शौर नही है । पक्षौ उडना सीखता( है, माँ-बाप के स्वर की नकल करके उसे सीखता है, वहं उसकी जीवनलीला क अद्ध है--विद्या के साथ पारा श्रौर मन कौ लडाई नही 1 यह्‌ रिक्षा सम्पूणं छुट्टी के दिन की तरह ही है, खेल के भेप में काम रहता है । किन्तु मनुष्यके धर शिशु के रूप में जन्म ग्रहण करना मानों श्रपराघ हो, वीस वर्ष तक दंड मिलेगा । इस विषय पर में श्रविक तकें न करके सिफं यही कहूगा कि यह्‌ वदी भारी भूल है 1 श्रसल मे मनेष्य कौ गलती यहं है कि श्रधिकाश लोग श्रपतेको ठीक भाव से प्रकाशमान नही कर पाते हैं रौर श्रपने को पूर्णरूप से प्रकाशमान करने में ही श्रानत्द मिलता है । माँ जहाँ केवल माँ है, वहाँ उसका काम कितने ही कमेंट का हो, उसे आनन्द मिलता है । वयोक्ति




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