राजनय | Rajnay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजनय का स्वरूप ७
तामनीति' शब्द के सम्बन्ध में यह् शंका उठायी जा सक्ती हं कि चूंकि
साम चव्द 'साम-दान-मेद-दण्ड' नामक चार उपायों के समूह् के साथ प्रयुक्त
होता र्हा ह ओर चकि ये चार उपाय शत्रु के सम्बन्ध मे ही प्रयुक्त होते आये हैं
इसलिए उस शव्द के प्रयोग से भी यह गन्ध आती है कि 'सामनीति' शत्रु के प्रति
उपयोग में लायी जानेवाली नीति है । इस सम्बन्ध में पहली बात तो यह हं
कि जहाँ तक मृन्ने पता है, उक्त चार उपायों का प्रयोग शत्रुओं के प्रति ही किया
जाय, ऐसा विधान कहीं नहीं किया गया हैं और न परंपरा के आधार पर ही
ऐसा कहा जा सकता हैं । वास्तव में आशय यह हूं कि इन चार उपायों का प्रयोग
सांसारिक व्यावहारिकता के नाते इतर पक्ष' या अधिक-से-अधिक 'विरोधी पक्ष
के प्रति किया जाना चाहिए, भले ही वह शत्रु न हो । -रुक्रनीति' में (दलोक
२३ से ३८ तक) तो इन चार उपायों का स्पष्ट रूप से मित्र, सम्बन्धी, पत्नी, पुत्र,
दत्रू आदि चिभिन्न व्यक्तियों के प्रति भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रयोग बताया है ।'
किन्तु यदि यह मान भी लिया जाय कि इनका प्रयोग शत्रु के प्रति ही करने का
विधान ओर परम्पयारही दहं ते भी सामः स्वयं किसी प्रकार दूषणयुक्त या
निदनीय नहीं कहा जा सकता वहु तो ओर भी प्रशंसनीय हं क्योकि शत्र के
प्रति भी प्रारंभ में संधिवार्ता और समझौता-पूर्ण नीति के अवरूम्बन की ही वात
कही गयी हैं ।
भारत के संविधान में इसके लिए 'राजनय' बाव्द प्रयुक्त किया गया है ।
किन्तु राजनय का गब्दाथं “राजनीति' ही होता हैं और दोनों में कोई अन्तर
नहीं हूं । ऐसा प्रतीत होता हैं कि संविधान को अंग्रेजी से हिन्दी में अनूदित
करनेवाठों ने राजनीति और कटनीति से अलग और भिन्न अर्थ प्रदर्शित करने के
लिए ही यह नया चाव्दं राजनय अंग्रेजी के डिप्लोमेसी दाब्दं के लिए प्रयुक्त
वियाह्। |
इन सव उप्यक्त बातों को ध्यान में रखते हुए ही इस पुस्तक में 'कूटनीति'
अथवा साजनय कं स्थान पर 'सामनीति' का ही प्रयोग करना ठीक समझा गया
था विनतू, जैसा ऊपर कहा जा चुका है, हमारे संविधान मेँ 'राजनय' शव्द
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कानीनि, चेंचरेदवर प्रेस वम्वई, मध्याय ४, टखोद ३१ से २८ तक
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