ज्ञानदेव - चिन्तनिका | Ghayan Dev Chintnika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साधना
३, चित्त-विकास-योग
न श्र न
शांति, ध्मा ओर दया की उत्तम परिपक्वता संपादन करः
ओर् आगे जव उनकी माप शांत हो जाय,
तो चैन से विरवालैक्य का आनंद मोगता रह ।
वाघा कुड भी नहीं ।
क्योंकि यह सच सहज ही चिदानंद रूप है ।
सोह-माया सेँ फेंसकर यफलत से इन्द्यों के अधीन मत हो ।
वस्र इतना काफी हे |
कटपना की कजरी निकार दे
ओर दीये से दीया जलाकर सारी दुनिया को उज्ज्वलः कर् ।
न १७ न
ज्ञानदेव को एक वार एक जंगम गुर् मिल था |
उसने अपने शास्र का सार थोड़े में वतला दिया :
मन एकाग्र कर्, वन मत खोज,
कारण परमेश्वर पास ही हे ।
अभिमान छोड़ दे.
या फिर सवके छिएु समान अभिमान रख ।
इतने से तेरी सारी छटपटाहट चांत होगी ।
प्रकृति को पार करेगा,
और अम्ृत-जीवन पायेगा ।
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