ज्ञानदेव - चिन्तनिका | Ghayan Dev Chintnika

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Ghayan Dev Chintnika by दामोदरदास मूँदड़ा - Damodardas Mantra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साधना ३, चित्त-विकास-योग न श्र न शांति, ध्मा ओर दया की उत्तम परिपक्वता संपादन करः ओर्‌ आगे जव उनकी माप शांत हो जाय, तो चैन से विरवालैक्य का आनंद मोगता रह । वाघा कुड भी नहीं । क्योंकि यह सच सहज ही चिदानंद रूप है । सोह-माया सेँ फेंसकर यफलत से इन्द्यों के अधीन मत हो । वस्र इतना काफी हे | कटपना की कजरी निकार दे ओर दीये से दीया जलाकर सारी दुनिया को उज्ज्वलः कर्‌ । न १७ न ज्ञानदेव को एक वार एक जंगम गुर्‌ मिल था | उसने अपने शास्र का सार थोड़े में वतला दिया : मन एकाग्र कर्‌, वन मत खोज, कारण परमेश्वर पास ही हे । अभिमान छोड़ दे. या फिर सवके छिएु समान अभिमान रख । इतने से तेरी सारी छटपटाहट चांत होगी । प्रकृति को पार करेगा, और अम्ृत-जीवन पायेगा ।




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