मुग़ल दरबार मआसिल-उल-उमरा (भाग १ ) | Mugal Darbar Maasil Ul Umara (Bhag-1)

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Mugal Darbar Maasil Ul Umara Bhag-1 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूमिका प्रत्येक जाति का यह सवेदा ध्येय रहता है कि वद्द छापने को सजीव बनाए रखने तथा उन्नति पथ पर दृता से सवेदा अग्रसर होने का प्रयत्न करती रहे । इसका एक प्रधान साधन उसके पूर्व गौरव की स्मृति है, जो सदा संजीवनी शक्ति का संचार करती हुई उसको 'झपने लक्ष्य की 'ार बढ़ने के लिये उत्साहित करती रदती है.। इस स्पति की रक्षा उस जाति के सादित्य-भांडार में उसे सुरक्षित रखने दी से दो सकती है, ओर इसको सुरक्षित न रखना अपने ध्येय को नष्ट करना है। साथ दो जिस सादित्य भांडार में इतिहास तथा जीवनचरित्र रूपी रत्न सं।चत न किए गए हों. वे कभी पूण नहीं माने जा सकते । हमे अपनी प्रिय जन्मभूमि भारव माता के प्राचोन इतिवृत्त को बड़े यत्न से सुरक्षित रखना होगा । दम भारतवासियों के लिये यद्द पूव॑ गौरव की स्मृति अभी तक अत्यधिक वश्यक दै, क्योकि उसके न रददने पर संसार की जातति-प्रदशिनी मे हमे स्यात्‌ कोई स्थान मिलना असभव दो जायगा । भकृति ने जगती-तल के एक अंश, हमारे इख प्यारे भारत पर एेसी कृपादृष्टि बना रखी दहै कि यँ समी भ्रकार के जलवायु, नदी, निमर, शन्न, फलः, पल, पश रादि वतेमान दै शीर यहाँ के रददनेवालों को जोवन की किसी आवश्यक वस्तु के लिये परमुखापेक्षी नहीं दोना पढ़ता । इसी




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