सत्यामृत प्रवाह | Satyamrat pravah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तरंग] ` पूर्वैभाग॥ ` {५)
देखते ॥ यदि कही इच्छा तो है परन्तु हम उस कौ इच्छा को
जानते नहीं तो इंशुर उंस इचछा को पूरी करंनें का -अथौं मानना पर
छेगा ॥ फिर हस यह पूंकते हैं कि वह इचूका उस में अपरे निमित्त
उठी वा किसी टूसरे के निमित्त ॥ = 3
यदि अपने निमित्त उढौतो वह पृ जौर इचा हीन कैसेहआ
चौर पूर्य नी तो सर्वव्यापी कैसे श्रा ॥ पिर यदि किसी दूसरे कै
निमित्त उस में इच्छा उठी तो उस समय जब लगत् ही नहीं.धा तो
दूसरा चर कौन था । यदि कहो उसने अपना प्रताप प्रकट करने
को इंच्छा कई तो प्रताप के न प्रकट कारने में उसकी ब्या हानि हो
ती ॥ यदि कही वह द्यालुहै अपनी दया प्रकट करनेको उसने जग-
त् रचा, क्योंकि जगत् न होता तो दया किस पर करता तो सुनों ॥
एक तो उस की दया उसे दुःखदायक होगई कि लिसने उसको चेन
` | सै न बैठने दिया ॥ दूसरे सिंह, सर्प, बिच्छ, आदि के रचने में जगत्
पर क्या दया हुई॥ ` ४
टूसरी वात इम यह पूते है कि आदिं काल कै माता पिता
तथा बीज और पंच तत्व बनाये का में से थे, क्योंकि उपादान के
बिना कुछ बन नहीं सकता ॥ यदि को पंचतत्व कै परमाणु निले
उनकी मोटा करके सव कुक वना लिया, तो बताओ कीं बनाया.॥
यदि कष्टो जीव पदार्थं अनादि बीर उस वी कर्म भी अनादि है कि
जिनका फल मोगानेके लिये ईपवरने परमाणु समूहको मिलाके स्थुल
जिया बौर जगत् रच लिया सो यह जगत् वादार उपना चीर मिटा
है तथा सदा उपजता मिठता रहेगा तो अब जौवोंके कर्म इंश्वरको
दुःखदाई होगये, मानने पढेंगे ॥ यदि कहो इंश्बरने एकनार यह सं
कीत वौध छोड़ाहै कि सृष्टिके पीछे प्रलय. और प्रलयवी पीछे रुष्टिहो
जाया करे, और जौव अपने कर्मका फल भोगते रहाकरें नित्य निंत्य
इंश्वर को संकल्प नहीं रचना पढ़ता जिससे सै वेचैन माना जावि,
ती सुनों ॥ षटि प्रलयकौ धारा तो तुमने अनादि मानौ इस संकेत
वौधनेका समय कौन सा ठहराचोगे क्योंकि जिस समय संवीत कधा
उससे पूर्व खष्टिका अभाव मानना, चाहिये ॥ यदि उससे पूर्वभी षटि
धी तो संबीतका बांधना कब और क्यों आवश्यक समका गया ।* . |
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