समाधिभक्ति प्रवचन | Samadhibhakti Pravachan

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Samadhibhakti Pravachan by सहजानन्द महाराज - Sahjanand Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दोहा रे १९ फरो । कितना सुन्दर भरिसाु्रत पराह्तमे लिए एफ पथ पर 'चलनेका दिग्दर्शन कराया हैं । सत्याणुब्रत च धच्र्यागुध्तका उपदेश देने वाते दाप्तरका धभार-- भाई) बचत घोलो, सोते पिला गृहस्थीफा काम षक्ेगा तषी, लेकिन जो दूसरे छा बध करदे, दृसरेकी निन्दा भरे हुए कठोर शब्द्‌ हो, दृसरेका ह्य भम॑ छेद दे, रसे बचन सतत घोलो । सस्याशुत्रतके सम्धन्धपरं फितनां सीषा उपदेश पिया ह ! इससे इसी समय शान्ति पाषोगे ्ौर ध्रात्मदशंनफी पात्रता भी रहेगी । फिसी दृसरेकौ चीजचिना दौ हरे चण किए षिता जीवन झच्छा गुजरेगा। चोर; ढाऊुवोंका जीवन भला नहीं घनता । थे घर्मके पात्र नहीं) चौर शास्तिके पाप्न नहीं और लौकिक सुखके भी पाध्र नहीं, भयमीत रहें; शह्य बनी रहे। चोरी पाप है। कुछ भी बिना दी हुई चीज ग्रहण मत करो | हाँ, गृहस्थीमें पानी थऔर मिट्टी--ये दो चीजें ऐसी हैं कि बिना दिए हुए लाना ही पढ़ता है। कहाँ ये बुध घर तालान थोड़े दी भ्रापको जल दे जायेंगे थबा खानसे मिट्टी नानी ही पढ़ें. । कहीं खान सापकों घर पेंठे थोड़े दी मिट्टी वे जायेगी । तो ये जल भौर मिट्ी तो बिना दिए हुए ही प्रहण करने पढ़ंगे, पर अल थौर मिष्ट भिना तो सम कुछ चिता दिए हुए प्रहण न करें; इसमें तो सूख गृहस्थोंका निभाष हैं । तो दम भिंना दो हुई चीज ग्रहण न करें । भपने व्यापार झादिकसे चरेन करके झाजी षिका चलार्ये, यह उपदेश हमारी शान्तिके लिए समर्थ है । रह घर्याशुत्रत व परिप्रहुपरिमाशु्ततका उपदेश्ष देनेवलि शासका प्राभारए- पतती स्के अतिरिक्त श्रभ्य परस्री) वेश्या झादिक पर झापनी इृष्टि मन डलो। गृस्योको कितना सुगम मागं घताया गया है घौर इसी कारण विवाहको सी गृहस्यपर्ममे किसी शशमे धर्मी घात एही गहै । विषा जो पएारनिदृत्तिका लकय दै, षह धर्म टै । छोर इस गृहस्थधर्मे श्रावफका सारा जीवन बहुन भके प्रकार निम पकता है । यो सुम ब्रवा. रुत्प पाकलो । परिय्टका पशिमण फर लो। परिग्रह तो पिशाथ हैं । जितना परिग्रह सित करोगे, उत्तनी ही पलभने बढ़ती जायेंगी । इस दुनियामें रद्द रहे हैं, मोदी लोगीमें रह रहे हैं, उनकी घातें तक रहे, सो छुछ धपने धापसे चिगना हो जाता है शौर इस ममताफे जातम पएंसना जन जाता दै। जो भारम्भमे परिग्रह हुता है, यह परिपरह लिसका जितना बड़ा है; घह्द चतना हु खी होता हैं । कारण यह है कि लाखों रुपये छा रहे हैं। उनका सुख नहीं भोग पाता, क्योंकि इससे झागेकी थौर सम्पदार्ी एृष्णा लग रही है । तो जब निरन्तर ऐष्साका भाष घना हुआ शोर उससे भविक पर वृष्णा लग गयी हैं तो बर्तमानमें पाये हप तालो




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