भारत शम्बदेत लेख | Bharat Shambdet Lekh
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शक्ति-सखुलन कायम हो डुका. था । देखने में यह युग स्वाधीनता
का युग था । पर वास्तव में, यष्ट इज़ारेदारियों का युग था । एलिज्ा-
चेय और चार्ल्स प्रथम के काल में ये ए्लघिकारी कम्पनियाँ शादी
त्राज्ञा-पत्र से चना करती यीं । त्रच पार्लामिण्ट ने उन्हें यह श्रधिकार
दे दिया दौर उनका राष्ट्रीकरण कर दिया }: (मार्च, ईस्ट
इद्डिया कम्पनी, उसका इतिहास आर परिणय, न्यू वोक डेली
ट्रियून, ११ जुलाइ, १८४३) )
इस एकाधिकार के खिलाफ़ इंग्लैगड के मिल-मालिक वरावर श्रान्दोलन
कर रहें थे | उन्होंने माँग की कि हिन्दुस्तान के बने हुये माल को इंग्लैंड में
न घुसने दिया लाय श्र उनकी माँग मान ली गई । हिन्दुस्तान के व्यापार
से बहुत चड़ी आमदनी दोती थी श्र इंग्लेरड के जो शन्य ब्यापारी इस
लाभ से वंत्रित रद्द गये थे, वे भी कम्पनी के एकाधिकार के ख़िलाफ़
श्रावाज़ उठा रहे थे ) इंडिया-विल के मसले पर, इस संघं का नतीजा
१७८३ में फ़ाक्स-तरकार के पतन के रूप मैं देखने में आया । फ़ाक्स-सरकार
कम्पनी के डायरेक्टरों श्र पोप्राइटरों के कोर्ट को खत्म करने की कोशिश .
मैं थी। वाद में इसी मसले को लेकर, देस्टिंग पर १७८६ से १७४५ तक
लम्बा मुकदमा चला । लेकिन, १८१३ तक कम्पनी का एकाधिकार ज्यों का
स्थों क्रायम रहा । १८१३ में, श्रौद्योगिक कात्ति की सफलता ने इंग्लैर के
कारखानेदार पू जीपति वग को सामने ला खड़ा किया । तभी लाकर कम्पनी
का एकाधघिकार टूटा: श्र १८३३ में इस एकाधिकार का अन्तिम रूप से
खात्मा हुआ | ` क व
, शैद१३. के बाद ही हिन्दुस्तान का द्रार्थिक ठढाँचा भी टूटा जब
इंग्लेगड के श्रीद्योगिक मिल-मालिकों ने इस पर घावा वोल दिया था |
उन्नीसवीं शताब्दी के-पूर्वार्थ सें हिन्दुस्तानी श्रार्थिक ठाँचे के इस विनाश
का चित्र माक्तं से श्रकाव्य तथ्य देते हुये खींचा हैं । १७८० से १८४०
तके के वोच, इंग्लैंड से .हिन्दुस्ताः को मेले जाने वाले माल छी तादाद में
भारी बढ़ती हुई । १७८० मे, इंग्लैरड से २४८६५१५२ पौरुड का माल
धे
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