दक्खिनी हिन्दी ओर उसके प्रेमाख्यान | Dakkhini Hindi Aur Usake Premakhyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दक्खिनी हित्दी वह परिचय १७
दक्षिण मारत को समय समय पर नप्ट भ्रष्ट करने अथवा यही परिवतेन
लाने में बेवर मानवीय शक्तियों ने ही नहीं विभिन्न प्राकृतिक शन्हियों ने भी
महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है । इसी म्रश के कारण इस क्षेत्र में अनेक दरों एव
घाडियों का. निर्माण होता रहा है जिसमे कालास्तर म दिनिन्न स्वतन्त्र राज्या
को इ्यापता हुई है। बाज भी श्रि पिट एवंत एवं उनकी श्रू खला अवशिष्ट दिलायी
पड़ती है ।
वर्तमान दकन प्राचीन भारतीय धमंद्रन्यों का दक्षिण पथ ही है, और इसी
को दक्षिण देश कहा जाता था । पाली प्राकृत में इस दरश्खिगपथ मौर दक्खिन बहू
जाता था «' इस दक्षिण देश की सीमा में परिवर्तेंन होता रहा है । कभी नमंदा और
विन्थ्य के दक्षिण का मध्य भाग, कभो नर्मदा और ताप्तो के दक्षिण भाग से सुदूर
नीचे भाग तक इसमे सम्मिलित था । आजकल विन्थ्य से कृष्णा वे उत्तरो किनारे
तक परिचम मे पश्चिमी घाट तक और पूर्वे से आन्थ्र के उत्तरो पश्चिमी जनपदों तक
हो सीमित है । इसका अधिकार माय महाराष्ट्र में मिल गया है क्रित इसमे बहर
दक्षिण सम्मिलित नहीं किया जाता है 1
उत्तरी भारत की आप जातियों ने दक्षिण पथ होते डे दक्षिण मे आकर
अपनों सम्पता एवं सरइत का प्रचार किया था। चन्द्वशी साजाओ म कौरवं पाण्डवो
अगस्त्य, सुतीश्नण शरमग भादि अब्रदूवो, सूर्येदसौ रामश््र आदि केदक्षिणम
भभियान का पर्ाप्त प्रमाण मिलता है 1१ दक्षिण भारतीयों का भी उत्तर में शासन
स्थापित हुआ था । आन्क्र ने सातवाहनों ने उत्तर मे कुछ समय तक राज्य निया
था । उत्तर भारत को जातियों से उनका सयकर सपर्ष हुमा था । इस प्रकार
उत्तर एंव दाक्षण के पालो, प्रतिहारों तथा राष्ट्र कूटों मे निरस्तर अधिकार के लिए
सर्प होता रहा है। मुनचमानों का भारत में अधिकार हो जाते के पश्चात यह
परम्परा समाप्त हों गई 1*
मुसलमानों में सवंप्रषम अनाउद्दीन खिलजी ने सन १२९३ ६० म गुजरात
पर अधिकार किया + उसके सेनापति सलिक काफुर ने इ3०४ ई+ मे महाराष्ट्र
जौर १३०७ ई म मनन और १३०८ ई० में कर्नाटक पर विजय प्राप्त की । इस
के बाद पे श्षेत्र दिल््ही शासत के अग माने जानि लगे 1* उस समय तक यहीं भाग
दकन बहा जाता या व दाद में मोहम्मद तुगलक ने दौलवावाइ को अपनी राजघानों
१. दही-पृष्ट च्म
९. हिन्दी विश्वकोश भाग पृष्ठ ४२४
३. स्टी-दृष्ठ गदर धा स य
४. दरितिनो दिन्दी-पृष्ट २६
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