श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ का वार्षिक मुख पत्र | Shri Jain Swetamber Tapagacch Sangh Ka Mukh Patra
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोतीलाल भड़कतिया - Motilal Bhadaktiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्म पुरुषार्थ
उपाध्याय श्री घररणन्द्र सागर जो म. साहब
एकि कोन -यजयामो यामेक आननम दे छनिक जिनतो विनम्य न्यक्तिप्थारियें
नन ननन
[0 सपा हद 111
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वर्नमातर कन का चिन्ान कैवन शरीर श्रपन किसी भी गति या किसी भी योनि
फी बात करना है परन्तु स्रात्मा को भूल गया. में थे चहाँ एक क्षण भी ऐसा नहीं होगा जहाँ
है। धर्म केयल ऑझात्मा की बात करता है. अपनने पुरुषार्थ न किया हो । यह पृस्पाथं सत
परन्तु णरीर वो भून गया है । इसी उद्ापोह या ग्रसन् होता ही है । एक बड़ा बंगला था |
| रन्सान दबिघा में पढ़े गया है । थिज्ञान ने. नौकर कचरा निक था । चहिं सेठजी
मो भोजन तो दिया परन्तु भूख को छीन का बच्चा उसी कचरे से मृद्धियां मर्-भरकर्
लिया हथियार दिये परन्तु प्रमवात्सल्य कोछान बाहर बिखेर रहा था । दोनों का पुरुपार्थ है
निया है । ऐशोग्राराय की सुधिधा दी परन्तु परन्तु एक का सतत है दूसरे का श्रसत है ।
टी नींद कोगी छिनलियाधमएक श्रामो करा
र्सरी थात्मा में सबकी अनुभूति कराता है ।
ता. राधाकृणणन ने ठीक कहा धान-विज्ञान के
मृग में टन्सान सली की सरह नरना नीय
गथा, पक्षी की तनह श्रन्ति म उद्ना
नी गया है परन्तु न्याम की नरु जमीन
फकिसी भी पदार्थ का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त
फकियाजायउसके 11 उपाय बतायेगये है । उसमें
प्रथम उपाय है उद्यम । दही में सबने है
उसयो श्राप साष्टाय श्रमणाम् करने न्दे वर्षों
~, ~ पदम सनः पनः प्राथना करते रहे कि दही देवता ढाट नो
पर घमना नहीं सास सका । जमाने १ ` मन्यन दे दा । तो र्या प्रायनो प्रार्भुनः
नन्दन का सरोका सिफ सम हो दे सता मात्रे सवदन मिन जायेगा? नमर (रन्मा-
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