श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ का वार्षिक मुख पत्र | Shri Jain Swetamber Tapagacch Sangh Ka Mukh Patra

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Shri Jain Swetamber Tapagacch Sangh Ka Mukh Patra by मोतीलाल भड़कतिया - Motilal Bhadaktiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर्म पुरुषार्थ उपाध्याय श्री घररणन्द्र सागर जो म. साहब एकि कोन -यजयामो यामेक आननम दे छनिक जिनतो विनम्य न्यक्तिप्थारियें नन ननन [0 सपा हद 111 (1 11 1 वर्नमातर कन का चिन्ान कैवन शरीर श्रपन किसी भी गति या किसी भी योनि फी बात करना है परन्तु स्रात्मा को भूल गया. में थे चहाँ एक क्षण भी ऐसा नहीं होगा जहाँ है। धर्म केयल ऑझात्मा की बात करता है. अपनने पुरुषार्थ न किया हो । यह पृस्पाथं सत परन्तु णरीर वो भून गया है । इसी उद्ापोह या ग्रसन्‌ होता ही है । एक बड़ा बंगला था | | रन्सान दबिघा में पढ़े गया है । थिज्ञान ने. नौकर कचरा निक था । चहिं सेठजी मो भोजन तो दिया परन्तु भूख को छीन का बच्चा उसी कचरे से मृद्धियां मर्-भरकर्‌ लिया हथियार दिये परन्तु प्रमवात्सल्य कोछान बाहर बिखेर रहा था । दोनों का पुरुपार्थ है निया है । ऐशोग्राराय की सुधिधा दी परन्तु परन्तु एक का सतत है दूसरे का श्रसत है । टी नींद कोगी छिनलियाधमएक श्रामो करा र्सरी थात्मा में सबकी अनुभूति कराता है । ता. राधाकृणणन ने ठीक कहा धान-विज्ञान के मृग में टन्सान सली की सरह नरना नीय गथा, पक्षी की तनह श्रन्ति म उद्ना नी गया है परन्तु न्याम की नरु जमीन फकिसी भी पदार्थ का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त फकियाजायउसके 11 उपाय बतायेगये है । उसमें प्रथम उपाय है उद्यम । दही में सबने है उसयो श्राप साष्टाय श्रमणाम्‌ करने न्दे वर्षों ~, ~ पदम सनः पनः प्राथना करते रहे कि दही देवता ढाट नो पर घमना नहीं सास सका । जमाने १ ` मन्यन दे दा । तो र्या प्रायनो प्रार्भुनः नन्दन का सरोका सिफ सम हो दे सता मात्रे सवदन मिन जायेगा? नमर (रन्मा- 1 + प व 4 भु सन चै क ५ ई ++ 4 म न्न डर हू है? प्र + मन न | > $ द ने: जानने से धम पुर्पोस श्ररमनत बाविश्यय फर्‌) १ पन र्त्नोा ऋत ष्टाः > पधा करने से समुद्र प्रापन्न्‌ रन्न निकामनम्‌ ष कक 4 चेक | ई | दगा? पन {चिनार से फटा हैं दिए नि: के पद ॐ नह द = द न र घाज पा मम [मानय जम पकवान परम हाउस है, शाम ये. पास चम ५ भे श्र ^ $ 4. न कि. ४ १ 2 1. प + त काके +] ४ नी, से $ इ दूकड था ++ १६५ छ द र > रस उर करे ग १.7 सदन 7 प सेट {शन > द डर अप न अर ५१ {६ उन = धन्‌ [यरु ५ => श {- कद भु का १ हमे कर १ ॐ भमः रेक्किह एन करक . इ = । जन न्क न षि तक भनक नष = रः +, (ऋ त र पै स स ६ ‡ १ १.१ के हद # ६५७ {१ क पक ध्‌ ड च ३, [^ | | ५ त १४ र्‌ क कक दे है ६५६ भ भैः भश क क वर # १९ श ई कक न सपा र, इ + र न य १9 शन 7 श सदत्‌ शि हर परप पा क; कपल पक के. पी दे + के बहिन ककः =. ज # उप व त ष्‌ क ४. + च 2 कन को पनी कर इ न दै ॐ 4 ^ + 4 > 9 { {2 ह श्ण ५ पके नकि 2111114 11 हे २, * ४ ष गई स्वर गई आई हू ९ ^ र जे ही क, धै च अ का २१ लमक ॥ कु कि श सर लीन १ ई षः अल जाम के र ५१ ४ हि जे (४ सर्द प १ ५ 41.“ ५ ५८१५२६२ + ङ है ॐ; 1 पे ५९१४ श ¢ ८ . क भै परै ड + ^ न, $ 9 ५ १.४ जार ५ च धम नक = > क + छ $, द + 1 ॐ ६५१ $ ¶ ५५ 2२ ६ ऋ प (२ 4, द्द प्र रहे ३०२ +, जटरकररड + $ ही कह रवैक बज, ‰ ५१ ग 2. वक क श क 48 क क थ क + कि पृक ट ^ 2 4 न + ह स वः + ङ ५५ कृ न्द ४ और है ज यीः ण नम, कक मन्व ज ह शभे > ह ॐ हक ~ फ न ६ न 82 > > ई ई य कु ६ ~ ष ११५९ 4 रं + ई ५६ = ~ कर ४ हूं गा की है हक की + च [] ए ४ ५ 3 डक ॥ क ष्य वी) ४ का क > अ छश हर [१ चत, न ॐ ॐ क जञ म्फ 9 ^ षि 2 4 ले ड ४ प्र नं “छै + भ ४ १६६ 24 व 5 क हे 4, ह| 2, १3 क $ $ = छह > 2 +^ ट ह डरे मे डर ॐ ॐ कर तर ह क कक उन ह ॥ ५ न कप शा पष्क पक ऊ ~ ~प ऋ + ॐ क उस है उलट रु ॐ ए 444 3 प जद उजूरें 4“ ॥ क क ङ डॉ £ प * ११ र + है ब $ ४ $ ^ ; च ॐ # नै ^ ९ : हैं ३




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