बन्धन तोड़ो | Bandhan Todo

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Bandhan Todo by गौतम मुनि - Gautam Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वन्धन तोडों ~~~ “पा, हम लोग तो मनुष्य है, पशु '्ीर पछी तक भी किसी प्रकार के बन्धन को पमन्द नहीं करते । तनिक सा तोता इतने चडे पिजडे की सलाखों में झन्तिम सास तक जूता र्ता हं । उसे परतन्त्रता का स्वादिष्ट मोजन भी प्रिय नर ोत्ता। पशु परियों की भावना यह्‌ हैं कि-- मिले खुश्क रोटी जो श्याङाद्‌ रह्‌ कर । वष्टः रै सरक्-श्रो-किल्लत के लवे मे वेहतर ॥ परन्तु दुख होता ६ यह दकर कि सनुप्य स्वयं दूसरा को दास वनाता ई, श्रौर स्वय उनका श्मौर दूसरा का दास वनता दै, वह पश्य पक्षियों की स्वतन्त्रता प्रयवां चन्धन-मुक्ति के लिण छटपटाइट से कोई शिक्षा प्रहर नहीं करता । जव में यह सुनता हूँ कि उक्त देश के नागरिक श्रपनी स्वतन्त्रता के लिये मह्वपं करते ह तो मुके सन्तोपष्टोता ६ै। सन्तोप इम क्तिषु कि वह्‌ भमात्मिक स्वभाव के श्नुवूल कार्य कर रदे हँ। मनुप्यका श्मात्मा किसी का दास रहना पसन्द नीं करता । प्रतएव युगो > से मनुष्य 'अपनी स्वतन्त्रता के लिए सह्वपं करता चला भाया दै, चौर बह करता रदेगा, क्योकि वन्धन भला कौन पसन्द करता है ? हा, बन्धन कोई पसन्द नष करता पिर मी लोग वन्धनं से जके हृष द । राज हम श्राजाद्‌ ई, वर्पो तक हमने श्रपने चन्धनों के विरुद्ध समाम किया । ९५ झगरतत १६४७ हमारे लिए स्वतन्त्रता का सन्देश लेकर श्चाया तो सारा देश उमड पडा स्वतन्त्रता के स्यागत के लिए । झंप्रेज़ी साम्राज्य से मुक्ति का दमने हार्दिक असिनन्दन किया और स्वतन्त्रता के प्रति पने हार्दिक उद्गारो को प्रगट करने के लिए सारे देश ने उत्सव मनाया । कई दर्प हो गए उस घटना को श्रीर दिनि बीतते दी जाते हैं, किन्तु मैं कटता हूँ




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