बन्धन तोड़ो | Bandhan Todo
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वन्धन तोडों
~~~ “पा,
हम लोग तो मनुष्य है, पशु '्ीर पछी तक भी किसी
प्रकार के बन्धन को पमन्द नहीं करते । तनिक सा तोता इतने चडे
पिजडे की सलाखों में झन्तिम सास तक जूता र्ता हं ।
उसे परतन्त्रता का स्वादिष्ट मोजन भी प्रिय नर ोत्ता। पशु
परियों की भावना यह् हैं कि--
मिले खुश्क रोटी जो श्याङाद् रह् कर ।
वष्टः रै सरक्-श्रो-किल्लत के लवे मे वेहतर ॥
परन्तु दुख होता ६ यह दकर कि सनुप्य स्वयं दूसरा को
दास वनाता ई, श्रौर स्वय उनका श्मौर दूसरा का दास वनता
दै, वह पश्य पक्षियों की स्वतन्त्रता प्रयवां चन्धन-मुक्ति के लिण
छटपटाइट से कोई शिक्षा प्रहर नहीं करता ।
जव में यह सुनता हूँ कि उक्त देश के नागरिक श्रपनी
स्वतन्त्रता के लिये मह्वपं करते ह तो मुके सन्तोपष्टोता ६ै।
सन्तोप इम क्तिषु कि वह् भमात्मिक स्वभाव के श्नुवूल कार्य
कर रदे हँ। मनुप्यका श्मात्मा किसी का दास रहना पसन्द
नीं करता । प्रतएव युगो > से मनुष्य 'अपनी स्वतन्त्रता के
लिए सह्वपं करता चला भाया दै, चौर बह करता रदेगा, क्योकि
वन्धन भला कौन पसन्द करता है ?
हा, बन्धन कोई पसन्द नष करता पिर मी लोग वन्धनं
से जके हृष द । राज हम श्राजाद् ई, वर्पो तक हमने श्रपने
चन्धनों के विरुद्ध समाम किया । ९५ झगरतत १६४७ हमारे लिए
स्वतन्त्रता का सन्देश लेकर श्चाया तो सारा देश उमड पडा
स्वतन्त्रता के स्यागत के लिए ।
झंप्रेज़ी साम्राज्य से मुक्ति का दमने हार्दिक असिनन्दन
किया और स्वतन्त्रता के प्रति पने हार्दिक उद्गारो को प्रगट
करने के लिए सारे देश ने उत्सव मनाया । कई दर्प हो गए
उस घटना को श्रीर दिनि बीतते दी जाते हैं, किन्तु मैं कटता हूँ
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