जैन धर्मामृत | Jain Dhhrmamrit
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प. हीरालाल शास्त्री - Pt. Heeralal Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अन्य और ग्रन्यकार-परिचय १७
उपयुक्त ठनो अन्थोक्त प्रकाशन उनके दहन्दी श्रनुवादके साथ अनेक
सस्थाओते हो चुका ह । समयसार कलशका प्रकाशन पं० राजमल्च्की
प्राचीन दिन्दी वचनिक्रके साथ व्रहुत पने व्र° शीतल प्रसादजीके द्वारा
सम्पादित ट्रोकर जैन विजय प्रिटिग प्रेस सूरतसे हुआ है और जा उस
नमय जेनमिनकर ब्रादकोका उपहार स्वरूप भी मेट किया गया था । हमने
जेन धर्मायृतम उक्त दोना त्रन्थाा उपयोग सनातन श्रन्थमालाके सप्तम
८. असितगति और सं० पंचसंग्रह, अमितगति-श्रावकाचार
प्राकन पंचसग्रदकों श्राधार बनाकर उसे पल्लवित करते हुए श्रा०
अभितगनिने श्रपने सरद्रत पंचसग्रदकी रचना की है । मूलग्रत्थके समान
दन अन्थमे भी उन्न नामवान पोच श्रव्याव हैं, जिनमेंते प्रथम भध्यायमे
२० प्रत्पणाग्रो दाय जीवक श्र शेष श्रव्यायोम कर्मक विविध
ग्रवत्यान्रोा चोढद् मारणार दाग वर्णन किया गया है । उन
यथ्यायेनन नाम रौर उनकी श्टक-संख्या इस प्रकर है--
2
१. जीवममास शलाक सख्या ३५३
२, प्रकृतित्तव 1 ४८
३, वन्वरस्तव ध १०६
४ शनक ३ २३७५
५. सप्ततिका 9 ४८४
उक्त इलाक-सख्याके श्रतिरिक्त पॉचो दी श्रध्यायोमें लगभग ५००
श्लाक-प्रमाण गद्य भाग भी दे और बीच-बीचमें मूलके श्रथको स्पट्ट करने-
वाली अनेकों श्रंक-संडट्रियोँ भी हे । इस ग्रन्थते जैनधर्मागतके दूसरे, छठे,
सातय, श्रौर दसवें श्रध्यायम गुणस्थानाके स्वरूपवाले २३ श्लोक संग्रहीत
किये गये हद |
ता० अमितगतिने एक श्रावकाचार भी रचा है, जो उनके नामपर
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