श्री जैनहितोपदेश भाग २-३ | Shri Jain Hitopdesh Part-2-3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थी जेनरिंतोपदेश भाग ै जॉं श्र
धमेवतोहि जीवस्य, भृखः कल्पद्रुमो भवेत् ॥
चितामणिः कमं करः कामधे किक. ॥ १८४
धर्मेण पुत्र प्रादिः सर्वं संपद्यते नृणां; ४
गृह वाहन वस्तुनि, सञ्यारकरणानि च. ॥ ११ ४
वरं युहृते मेक॑च, धमं युक्तस्य जीवितं ॥
तद्धनस्य बथा वषः कोटा कोटि विशेषतः । १२ ॥
यम दम समयातं, स्वं कस्या बीजं ।
सुगति गमन देव, तीथनेः प्रणीत; ॥
भवजलनिधिणोतं, सार पाथेय मुच्चे
स्यज सकर विकार धममारायय खम्. ॥ १३ ॥
पापत्यज.
पापं श्चं परं विद्धिः शमर तिर्यगगतिपरदं ॥
रोग शादि भांडार. सवं इखार्करं णाम् ॥ १४ ।४
जीवतोऽपि शत नेयाः धवं रीना मानदाः ॥
सरता धर्पेण संय॒क्ताः इहा यत्र च जीविताः १५
पापवतो टि नास्त्यस्य धन धान्य गृहादिकं ॥
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