पांडव चरित्र | Shri Jawahar Kienawali (kiran 17 Pandav Charitar Bhag-1)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाण्डव-चरित ] | ११ हयाणीए' गयाणीए रहाणीए तहैव ` य । पायताणीए महया सन्वभो परिवारिए ।1२॥ मीए छृहित्ता हयगश्रो कपिचुज्जाणकेसरे । भीए सन्ते मिए तत्थ वहइ रसमुच्छिए ।\२।।८०अ० १८ इस प्रकार शास्त्र मे कहा है कि संयति राजा चतु- रंगिनी सेना लेकर मृगया के लिए गया-था । कहा जा सकता है कि घर्मकथा मे मृगया के वर्णन की क्या आवश्यकता है?. ऐसा कहने वाले को यही उत्तर दिया जा सकता है कि प्रत्येक वात पर समभाव से विचार करना चाहिए श्रौर प्रत्येकः वस्तु के यथायोग्य स्वरूप को समने. का प्रयत्न करना चाहिए । श्राज जेनधमे का श्रनुयायी कोई राजा नहीं, रहा । इसके अन्याय कारणों के साथ एक प्रघान कारण जैनो की संकुचित मनोवृत्ति भी है । प्राजकल का जन समाज सीमा- तीत असहनशील वन॒ गया है वह शास्त्रो के विषय में अपनी ही इष्टि को सर्वोपरि मानने लगा है । जेनशास्त्र को यह मान्य नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति संद्धातिक बातो को श्रपनी दृष्टि से देखे था. माने । जेनशास्त्र का कथन है कि हिसा के स्थान पर हिंसा और अहिसा के स्थान पर प्रहिसा समफो । यह्‌ हठ-वुद्धि छोड दो कि जो हम कहते हैं वही होना चाहिए दूसरा क्यो होता है * ससार मे स्वर्ग भी है; नरक भी है । पाप भी है, पुण्य भी है । श्राप श्रपनी हठ- वृद्धि से इनमे से किसी को नही मिटा सकते । शास्त्र पाप- पुण्य, घर्म-अघमं सभी का वरोन- करता है । आप स्वयं अधिक से श्रधिक पाप से बचें, लेकिन सहसा किसी बात की




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