ज्ञानयोग का तत्त्व | Gyanyog ka Tatv
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.37 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)च्लेयाग्य श्ख
सयसे होनेवाला वैरार्य--संसारके भोग भोगनेसे परिणामों
नरककी प्राप्ति होगी; क्योंकि भोगमें संग्रदकी आवश्यकता है;
सुंग्रहके छिये आरम्भ आवस्यक हैं, आरम्भर्भ पाप होता है, पापका
फल नरक या दुःख है । इस तरह भोगके साधनेमिं पाप और
पापका परिंगाम दु:ख समझकर उसके समयसे विययोसे अछग होना
भयसे उत्पन वैराग्स है ।
बिंचारसे होनेवाला वैरा्य--जिन पदार्थोको भोग्य मानकर
उनके सज्जसे आनन्दकी भावना की जाती है, जिनकी प्राप्तिमें
सुखकी प्रतीति होती है, वे वास्तवर्में न भोग हैं, न सुखके साधन
हैँ, न उनमें सुख है । दुःखपूर्ण पदार्थोमे--दुःखर्मे हो अविचारसे
सुखकी कल्पना कर छी गयी है. । इसीसे वे सुखरूप भासते हैं,
चास्तवमें तो दुःख या दुःखके ही क्यारण हैं । भगवानने कहा है--
थे हि संसपर्शजा भोगा डुम्खयोनय एव ते ॥
आाद्यन्तबन्तः क्तैन्तेय न सेषु रमते बुधः ॥
( गीता ५२९ ३
प्जो ये इन्द्रिय तथा विंषयोंक्षि संयोगसे उत्पन छोनेवाडे सब
भोग हैं, वे यद्यपि विषयी पुरुषोंकों खुखरूप भसासते हैं, तो शी
निस्संदेह दु.ःखके ही हेतु हैं और आदि-अन्तवाले अर्थात् अनित्य
हैं, इसलिये हे. अजुन ! बुद्धिमान, विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता |?
अनित्य न प्रतीत हों तो इनको क्षणभज्ुर समझकर सदन करना
चाहिये । भगवान् कहते हैं---
ज्ञा७ यो ० तर ब---
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