प्रियप्रवास में काव्य संस्कृति ओर दर्शन | Priyapravas Me Kavya Sanskriti Aur Darshan

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Priyapravas Me Kavya Sanskriti Aur Darshan by डॉ द्वारिकाप्रसाद सक्सेना - Dr. Dwarika Prasad Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६ 1 प्रस्तुत गरने म है। कहीं भी श्रापको कोई तत्छम शब्द देखने को नहीं लेगा । सब्र तद्धव दाब्द प्रधान सरल एव सुवोध बोलचाल की भाषा वा प्रयोग दिया गया है । इस उपन्यास को पढ़कर डा” श़ियसन इतने प्रसन्न हुए थे फि इन आपने इदयं सिविलन्सवि्ठ वी परीक्षा वे पादृयक्रम में रखवा दमा धा तदुपरन्त हरिप्नोष जी ने प्रघक्षिला पून नामक दहरा उपन्पास लिखा । यह भी सामाजिक उपयास है। इसम तलालीन बिलासी जमीदारी के नग्वरूप का भरच्या दिष्दयोन कराया गया ह 1 यहाँ प्रकृतिं चित्रण भ्रलन्त जीव एव मनामाहक है तथा चरित्र चित्रण म श्रादयावादिता क श्रपनाया गया है। य दानो उपयास् भौपन्यासिक कला वी दृष्टि से उतने उत्कृष्ट नहीं, व्याकि य हिन्दी की ठठ मापा का नमुना प्रस्तुर्े करने के लिए लिखे गये य । इसी पारण इनसे मौपन्याछिक कला. वा ता वधा अभाव ही है कित्तु फिर भी उपयास-सषत्र म भाषा सम्बन्धी प्रयोग की दृष्टि से इनका महत्वपूर्ण स्थान है । हरिपौध जी ने उपन्यासो के धतिरिक्त समिमिणी परिणय तया प्रचुम्त विजय ब्यायोग' नामक दो रूपक भी लिख इनम स दविमणी परिणय के सवाद प्रायं ग्रधिव लम्द तथा भ्रस्वाभाविक हैं । यहाँ प्राचीन नादू शैलौ का श्रषनाया सया है । कवितां क लिए व्रजमापा की प्रयाग दभा है तथा मादूयवला का सु दर रूप दिखताइ गली देता । दुसरा प्रयुज्ञ विजय व्यायागं मारवदु बद ब घनजय व्यायोग के उपरान्त हिंदी वा दूसरा वब्यायाग है। इसम भागवत व आधार पर श्रीढृष्ण व' पुशर प्रयुरत दारा शम्वरासुर के बब की कया दी गई है / नादुयकला वी दृष्टि से यहूं ग्रथ भी साधारण हा है। परन्तु रूप मे श्रपनो दिघा के कारण इसवा एति हाकि महवदै1 हरिम्रौष जी ने इतिहास तथा श्रालाचना व लेन म भी पर्याम्ति मायं विया | झापने परना विश्वविद्यावय के लिए हिन्दी-माहित्य के इतिहास पर का ध्याम्यान तैयार व्यथ जा पुस्तवाकार रूप से. हिन्दी भाषा श्रौर साहित्य विक्र क लॉम से प्रवाशित हुए । इस ग्रय मे इविहास भ्रौर भाषा विज्ञान फा ८ गुदर खम्मिधणदै ठया भापाकस्वटप, उव छडुगम एव विकस्‌ प्रादि पर पच्छा प्रक्ा्ाढाता गयादहै। खद वदी विशता यह है कि इस इतिहास-प्रय म उदं मापा के कविया वा भी उरलख मिलना है भ्रौर उद् को मी हिंदी भाषा दी ही एक दलों स्वीकार किया गया है। इस ग्रय के प्रतिरिक्त मापन रसकलस की सृूमिका लिखी, जो श्रालावना-साहित्य म




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