वैदिक छन्दोमीमांसा | Vedik Chhandomeemansa

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Vedik Chhandomeemansa by पं. युधिष्ठिर मीमांसक - Pt Yudhishthir Mimansak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छन्दः पदु के अथ और उसके लक्षण ७ गायत्री च च्रहद्युष्णिग्जगती त्रिष्टवेव च] अवुष्प पङ्किरिदयुक्तादछन्दांसि दस्यो रवेः इनका भाव यही है कि सर्य के सात अश्व अथवा सप्तविध रदमि्योँमी गायत्री आदि नामो से व्यवहृत होती ई । गायत्री यथवा स्येन का स्वर्गलोक से धृरथिवी पर॒ सोमादरणसम्नन्धी वेदिक कथां का रहस्य भी इसी मे निहित है । सूर्घरव्िि के अर्थमें छन्टः पट का प्रयोग क्ग्वेद में भी उपलब्ध होता ई । यथा-- श्रिये छन्द न स्म॑यते विभाती । च० ५।९२।६॥ अर्थात्‌--श्री ( = प्रकाश) के लिए छन्द के समान [ उपा ] मुस्कराती है प्रका करती हूं 1 ३-सप्तताम--माध्यन्टिन सं० १७1७९ की व्याख्या करते हुए शतपथ ९२३४४ में लिखा है-- छन्दासि वा अस्य [ अग्ते: ] सप्ततास प्रियाणि । मर्थात्‌--छन्द ही निश्चय ते इस [ अचरि ] के सात धाम प्रिय हैं । ये सात धाम कोन से ई, यह अनुसन्वेय रै । --अभ्नि कौ भरिया तचू-तेत्तिरीय संहिता ५।२।१ मे तित्तिरिका प्रवचन दै-- अग्ने्वँ प्रिया तनू छन्दांसि । अर्थात्‌-- अनि की प्रिव तन्‌ दो खन्द है | वैदिक साहित्य में इसी प्रकार अनेक स्थों में छन्द: पढठ का प्रयोग सिल्ता है । ८--वेदबिदोप--स्वामी दयानन्ट सरस्वती ने अपनी त्ग्वेदादिभाष्य- भूमिका में यजुः ३१1७ का ब्याख्यान करते हुए छन्दांसि का अर्थ अथवेवेद किया दै | र ठीकिक बाङ्य मे--कोन ग्रन्थो मे छन्दः पट के निम्न अर्थं उपलब्ध होते है-- क -छन्द: पयोडभिलापे च । अमर ३।३।२३२॥ १, (छन्दांसि ) सथर्वच्दश्च 1......... चेदानां नायन्यादिछन्दोन्वि- सतया ुनरछन्दां सीति पटं चतुर स्याथववेवेद स्योत्पत्ति इ्ापयतीति अवभेयम्‌ | (ऋरग्वेदुादिभाप्यभूमिकाः वेदो्पत्ति पधरकरण ! -




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