भागवत दर्शन | Bhagwat Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ १ ) वाहन द्वारा हम उस दिन वृन्दावन नहीं पहुँच सकते थे ! जब किसी भी प्रकार सरकारों भ्रघिवक्ता घपनी बात को दो दिन के पूर्व प्रयत से सिद्ध कहने में समय न हुए, तो दूसरे दिन सायकान, मे उन्दने प्रान्नीय सरकार री सम्मति दौ, इत प्रभि- योग को तुरन्त लोटा लो, ग्रह्मदारी जी को तुरन्त छोड दो 1” मुक्त दोनो झोर के वाद विवाद मे बड़ा भानन्द श्रा रहा था । ऐसा भव्य नाटक मैंने जोवन हिले पहिल देखा था । न्धायापीशो की वह गम्मोर मुद्रा, तथा प्रधिवक्तप्रो कीजो हास्यस्यते सपुर्िनि एक दूमरे को विडाने वाती युक्ति उत गम्मीर वातावर्श में मो सरता विघेर रही यौ। मे गोरक्षा प्रमियान समिति का प्रध्यश्न या हमारे १० ता के जुलूस पर सरवार को भोर से गालियाँ चलायी गयो थीं बहुत से झादमी मारे गय ! स्सी प्रसंग में हमारे वकील खर साहब न बहा-- यह सब काम गुडो का या ।” न्यापाघोशने क्टा--गुडा बा काम ? तब उन लोगों वो शुडा प्रचिनियम के भ्नुसार पडा वयो सही गया?” खरे साहूष ने वनावटो गम्भीरता के स्वरमे कग *श्रोमानु ! वे पकड़े कंसे जाति! वे माघारण गृन्हे नदीये) याप्रेसो गुन्डे थे ।'” “काग्रेस गुडे शाब्द वो सुनते ही दहाँ उपस्थित सभी वी पे दशक ठठावा मारकर हँस पड़े । न्यायाधीश मी भ्पनी हँसी को न रोक सके । न हंसने वालों में हमारे सरकारी मदाधिफ्ा मिश्र जीही एकये। मै प्राश्यं बर रहा था, कि ये वकोल सोग इतने बड़े न्याया- लय में भो ऐपी कड़ो-कड़ी बातें केसे वह जाते हैं भौर इन पर कुछ प्रमियोग सो नहीं लगाया जाना ।




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