खुर्जा शास्त्रार्थकापूर्वरंग | khurjashastrathakapurvrang
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४१.
1 भ्रीः॥
॥ विज्ञापन ॥
ये महाशयो की गुप्त खिट्ठी का, प्रत्युत्तर
सम्वृण धमोत्लाही सखन बन्दी को धिरित हो कि समाज की
तरफ खे एक पत्र पडित मेवारामजो के पाख मिती कार्तिक शुक्का
२ शुक्रवार को श्राया जिससे अद्धत हो रस टपकता हे श्रस्तु भ्रात्-
वगो यह तो श्राप सभो जानते ह कि श्राय महाशयो का यह सदैव
का कार्य है कि बृथा पत्रादि रंगकर विचारके नियत समय को टाल
देना अवभी उसीका पूर्वरंग है अन्यथा गुप्त पत्र क्यो? बस जब तक
श्रायसमाज श्रपने पत्रको छपाकर सर्वत्र प्रकाशित न करे तथ तक
भत्युत्तर देना केवल पिष्ट पेषण हे ॥ श्रलेमुन्सु ॥
निवेदक जयनगायन उपमंभी नै” ? जनसभा खुज्ञौः
समाक्षक । हमारे इस तीसरे विशापन में जो... ' अद्भतदी रस
पकता है ये शद् ह सो मेवारामजी षर भूर श्रक्षेप परक ह एस
के उसर में झायमहाशया का निम्न लिखित छपा विशापन वितरण
हुआ ॥
॥ श्रोरेम् ॥
विज्ञापन
प्रिय वाचक दन्द यह झाप लोगोपर मली प्रकार प्रकट है. कि
ऋस्य समाज खुज़ का जनसभा के साथ शास्त्राथ वा विचार होने
बाला है जैसा कि आप महाशया ने श्रायर्पसमाज श्रोर जैनसभा के
पूर्व प्रदस विज्ञापनों से प्रमाविषयीभूत फिया होगा यद्यपि स्थानीय
अआर्य्यसमाज ने श्नीमान् पे० मेबारामजी कफ साथ शास्त्राथ करने का!
दृढ़ निश्चय करालिया था परन्तु प्रयेसित पंडितजी ने शास्त्रार्थ को
अस्थीकार करते हुए केवल प्रश्नो्तरोंके लिये हीं समय देने की
ऋस बबा प्रकट की दे अस्तु आयेस माज प्रश्लौस यों के लिये थी अब
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