काव्य समीक्षा | Kavya Sameeksha

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उर्मिला कुमारी गुप्ता -Urmila Kumari Gupta

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सुरेशचंद्र गुप्त -sureshchandra Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी-कविता का विकास मन की रागात्मक चेतना का स्पशं करने के कारण कविता सर्दव व्यति को अपनी ओर विशेष रूप से आकर्षित करती रही ह । यही कारणं कि विव कै प्रत्येक देश ने साहित्य-सु जन के अवसर पर सवंप्रथम उसी की ओर रुचि प्रदर्शित करते हुए अनुभूति तथा कल्पना के माध्यम से अपनी भाव- नाओं को सरस अभिव्यक्ति प्रदान की है । देश और काल के भेद से कविता के स्वीकृत विषय भी अनेकरूप रहे हें और उनमें पर्याप्त अन्तर का विधान भी हुआ हे, किन्तु अपनी रसात्मकता और सहज कोमलता के कारण उसने इस परिवतंन को सर्देव अत्यन्त स्वाभाविक रूप में ग्रहण किया हं । हिन्दी -कविता के विकसि का अध्ययन करने पर भी हम इस धारणा को सदेव समान रूप से सत्य पाते हं । विषय-प्रसार की दृष्टि से हम हिन्दी-कविता को साधारणतः चार युगों में विभक्त कर सकते हें । इस चतुर्मुत्री विभाजन में प्रत्येक सूत्र की अपनी पुथक्‌ सीमा हैं और भिन्न-भिन्न प्रवृत्तियों पर आधारित होने के कारण उनमें से प्रत्येक का उनके अनुरूप स्वतन्त्र रीति से विकास हुआ हे । दन युगो के प्रचलित नाम इस प्रकार ह-- (१) वीरगाथा काठ, (२) भक्ति काल (३) रीति काल (४) आधुनिक काल । हिन्दी-कविता के विकास को हृदयंगम करने के लिए हमें स्पष्टतः




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