मैं और मेरी मोटर | Main Aur Merii Motor
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
163
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तॉबे के भाव चाँदी की खरीद डे
विषय पर उम्र मत रखते हुए भी केलाश चुप रहे । उन्होंने सरदारजी
की तरफ देखा मानों उनके विचारों से सहमति प्रकट कर रहे हों, श्रौर
कहा--““पुरानी गाड़ी जरूरी नहीं कि खराब हो, पर यह तो मानना ही
पड़ेगा कि सेकिण्डहैंड मशीनरी कभी भी धोखा दे सकती है । एक-दो
बार मैं भी पुरानी गाड़ियाँ खरीदने की गलती कर चुका हूँ । सदा नुक-
सान ही उठाया है । इसलिए में समभता हूँ कि श्रगर पुरानी ही गाड़ी
लेनी है तो बहुत ठोक-बजाकर लेनी पड़ेगी ।”
“यह आपने कौन-सी नई बात कही, कैलाशजी । पुरानी गाड़ी को
तो दुनिया पुरानी ही कहेगी । फिर भी बहुत-सी पुरार्नी गाड़ियाँ ऐसी
दमदार होती हैं कि नई उनके श्रागे कुछ नहीं । रही धोखा खाने की
बात, यहाँ उसका सवाल ही नहीं उठेगा । मैं जो बीच में हूँ । घोखा
आदमी तभी खाता है जब श्रनजान व्यक्ति पर विश्वास करना पड़े ।
अब तो मैं बीच में हूँ । देमन्तजी को कुछ भी चिन्ता नहीं करनी
चाहिए. । पहले मैं श्रपनी पूरी तसल्ली करूँ गा, तभी इन्हें गाड़ी खरीदने
को राय दूँगा ।”'
अब कोई भी कुछ श्र न कह सका । सरदारजी की दलीलों को
काटना सम्भव नहीं था । एक-दूसरे से हाथ मिला हम लोग कोफी हाउस
से विदा हो गये ।
चार दिन बाद ही दीवानर्सिहजी ने मुभ से मिलना शुरू किया ।
तर यह मिलने और कारें दिखाने का क्रम तमी समास द्रा, जवर मनि
एक पुरानी स्टूडीबेकर खरीद ली । उस अवसर पर दीवानसिंहजी ने
जो भाषण दिया वह मेरे लिए; चिरस्मरणीय रहेगा । मेरा यह खयाल
है (श्रौर कैलाश मुभ से सहमत है) कि यदि प्यारेलाल एण्ड सन्स के
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