मैं और मेरी मोटर | Main Aur Merii Motor

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Main Aur Merii Motor by राजेन्द्रलाल हांडा -Rajendra Lal Handa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तॉबे के भाव चाँदी की खरीद डे विषय पर उम्र मत रखते हुए भी केलाश चुप रहे । उन्होंने सरदारजी की तरफ देखा मानों उनके विचारों से सहमति प्रकट कर रहे हों, श्रौर कहा--““पुरानी गाड़ी जरूरी नहीं कि खराब हो, पर यह तो मानना ही पड़ेगा कि सेकिण्डहैंड मशीनरी कभी भी धोखा दे सकती है । एक-दो बार मैं भी पुरानी गाड़ियाँ खरीदने की गलती कर चुका हूँ । सदा नुक- सान ही उठाया है । इसलिए में समभता हूँ कि श्रगर पुरानी ही गाड़ी लेनी है तो बहुत ठोक-बजाकर लेनी पड़ेगी ।” “यह आपने कौन-सी नई बात कही, कैलाशजी । पुरानी गाड़ी को तो दुनिया पुरानी ही कहेगी । फिर भी बहुत-सी पुरार्नी गाड़ियाँ ऐसी दमदार होती हैं कि नई उनके श्रागे कुछ नहीं । रही धोखा खाने की बात, यहाँ उसका सवाल ही नहीं उठेगा । मैं जो बीच में हूँ । घोखा आदमी तभी खाता है जब श्रनजान व्यक्ति पर विश्वास करना पड़े । अब तो मैं बीच में हूँ । देमन्तजी को कुछ भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए. । पहले मैं श्रपनी पूरी तसल्ली करूँ गा, तभी इन्हें गाड़ी खरीदने को राय दूँगा ।”' अब कोई भी कुछ श्र न कह सका । सरदारजी की दलीलों को काटना सम्भव नहीं था । एक-दूसरे से हाथ मिला हम लोग कोफी हाउस से विदा हो गये । चार दिन बाद ही दीवानर्सिहजी ने मुभ से मिलना शुरू किया । तर यह मिलने और कारें दिखाने का क्रम तमी समास द्रा, जवर मनि एक पुरानी स्टूडीबेकर खरीद ली । उस अवसर पर दीवानसिंहजी ने जो भाषण दिया वह मेरे लिए; चिरस्मरणीय रहेगा । मेरा यह खयाल है (श्रौर कैलाश मुभ से सहमत है) कि यदि प्यारेलाल एण्ड सन्स के




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