सात प्रमुख कवि | Saath Pramukh Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.071 GB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“'दरियौघ” जी की कविता
श्री पं श्रयोध्यासिह जी स्वभाव से सरल श्रौर श्रत्यन्त
सजन व्यक्ति । मिथ्याभिमान आपको छू तक नहीं गया है ।
झाप यद्यपि सनातन-धघर्मौबलम्वी हैं, परन्तु अन्धपरम्परा के
पत्तपाती या हानिकारक रूढ़ियों के समर्थक नहीं हैं । झापके
सामाजिक विचार भी उन्नत हैं। भारत की प्राचीन सभ्यता के
झाप भक्त दें । दिन्दू-जाति के वर्तमान पतन पर आप बडे
मार्मिक उद्गार प्रकट ऋरते रहते हैं ।
उपाध्याय जी पुराने ठरे के व्यक्ति टै, रहन-सहन
आपका बहुत सादा है, परन्तु विचार ापके नवीन युग के
अनुकूल दै । हिन्दू-समाज में खधारों के भाप वड़े पक्ञपाती
हैं। विधवा-विवाह, श्रदूतोद्धार, विदेश-यात्रा झादि के शाप
समथंक हैं । अपके इन सव विचारों की छाप श्ापकी
कविता पर भी पड़ी है। स्वतन्त्र विचारों से शोत-प्रोत धोने
के कारण झापकी रचनायें समयानुकरूल शौर लोक-प्रिय होती
हैं। झापकी कबित्व-शक्ति, दिन्दी-परेम श्रौर साहित्य-शाख
के पांडित्य से प्रभावित होकर जनता ने श्रापको हिन्दी
सादित्य-सम्मेलन के दिल्ली अधिवेशन का सभापति बनाया
या। इस समय तक श्राप दर्जनों सभा-सम्मेलनों के छध्यत्त
हो चुके हैं ।
'हरिऔध' जी की कविता
पं० अयोध्यासिंद ज्ञी शरू-शुरू में व्रजभाषा के न्द्र
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