सात प्रमुख कवि | Saath Pramukh Kavi

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Saath Pramukh Kavi by मूलराज जैन - Mulraj Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“'दरियौघ” जी की कविता श्री पं श्रयोध्यासिह जी स्वभाव से सरल श्रौर श्रत्यन्त सजन व्यक्ति । मिथ्याभिमान आपको छू तक नहीं गया है । झाप यद्यपि सनातन-धघर्मौबलम्वी हैं, परन्तु अन्धपरम्परा के पत्तपाती या हानिकारक रूढ़ियों के समर्थक नहीं हैं । झापके सामाजिक विचार भी उन्नत हैं। भारत की प्राचीन सभ्यता के झाप भक्त दें । दिन्दू-जाति के वर्तमान पतन पर आप बडे मार्मिक उद्गार प्रकट ऋरते रहते हैं । उपाध्याय जी पुराने ठरे के व्यक्ति टै, रहन-सहन आपका बहुत सादा है, परन्तु विचार ापके नवीन युग के अनुकूल दै । हिन्दू-समाज में खधारों के भाप वड़े पक्ञपाती हैं। विधवा-विवाह, श्रदूतोद्धार, विदेश-यात्रा झादि के शाप समथंक हैं । अपके इन सव विचारों की छाप श्ापकी कविता पर भी पड़ी है। स्वतन्त्र विचारों से शोत-प्रोत धोने के कारण झापकी रचनायें समयानुकरूल शौर लोक-प्रिय होती हैं। झापकी कबित्व-शक्ति, दिन्दी-परेम श्रौर साहित्य-शाख के पांडित्य से प्रभावित होकर जनता ने श्रापको हिन्दी सादित्य-सम्मेलन के दिल्ली अधिवेशन का सभापति बनाया या। इस समय तक श्राप दर्जनों सभा-सम्मेलनों के छध्यत्त हो चुके हैं । 'हरिऔध' जी की कविता पं० अयोध्यासिंद ज्ञी शरू-शुरू में व्रजभाषा के न्द्र ११




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