सुन्दर ग्रंथावली | Sunder-granthavali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43 MB
कुल पष्ठ :
848
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दौः शट्
आध्यात्मिकता ही भारत की विशेषता दे । भारतीय राष्ट्र का अस्तित्व
उसकी आध्यात्मिकता पर ही अवलम्बित है। सारे भारत में दी सन्तों
द्वारा रचित वाणियाँ मिढछती है। राजस्थान मं मी इसका संग्रह प्रचुर
परिमाण में है । पर यह अमूल्य धरोहर छिन्न-भिन्न अवस्था में पड़ी
हुई दे । जगह-जगह सन्त-साहित्य के हीरे विखरे पडं दँ, अनेकों ग्रन्थ-
रत्र वर्षा, दीमक्र ओर दूमलो मेँ अपना अस्तित्व खो चुकेहं। तोमी,
अभी हमारे सामने जो कु दै-यदि हम उसको भी रक्षा कर ठं तो बहुत
जल्दी जगत हूए समना चाहिये! नहीं ता इनका अस्तित्व भी केवट
पौराणिक कथा मं सीमित दहो जायगा । वतमान समय में इसकी रक्षा का
सवसं सहज उपाय दै, इन्द् सुन्दर रूपसे संपादित कराकं प्रकाशित करा देना |
राजस्थान के संत-साहित्य में दादृपंधियों द्वारा रचा हुआ साहित्य
ही विशेष है-- और यह साहित्य दादृमठों में, दादू भक्तों के घरों में और
प्राचीन साहित्य-प्रेमियां के बंश्जों के पास स्थान-स्थान पर पड़ा हुआ है ।
महात्मा सुन्दरदासज्ी दादूजी के प्रधान शिप्यों में से थे । दादू-शिप्यों में
ये सबसे अधिक विद्वान, शास्त्र पारंगत और पंडितथे। यही कारण
था कि दादू-शिप्यों में आपका बहुत सम्मान था ।
हिन्दी-साहित्य प्रेमी पाठक आपके रचित सवंया ग्रन्थ से बहुत दिनों
से परिचित हैं--पर उस महान आमा की अन्य कृतियों से विठकुछ अन-
भिज्ञ। जब में अपने परम मित्र ठाकुर भगवती प्रसादसिंदजी बीसेन
के साथ राजस्थानी साहित्य की. खोज के उद्देश्य से जयपुर गया--तत्
हां क मुप्रसिद्ध पंडित-प्रवर पुरोहित हरिनारायणजी के पास उन महात्मा
की क्तियों का संपूर्ण संग्रह-देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई । उसी समय
केवल उस परमपिता परमात्मा के भरोसे पर हम दोनोंने इस ग्रन्थरत्न को
प्रकाशित करने का दृढ़ संकरप कर लिया-और पुरोंहितजी से इस विपय
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