सुन्दर ग्रंथावली | Sunder-granthavali

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Sunder-granthavali  by महात्मा सुन्दरदास - Mahatma Sundardas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दौः शट्‌ आध्यात्मिकता ही भारत की विशेषता दे । भारतीय राष्ट्र का अस्तित्व उसकी आध्यात्मिकता पर ही अवलम्बित है। सारे भारत में दी सन्तों द्वारा रचित वाणियाँ मिढछती है। राजस्थान मं मी इसका संग्रह प्रचुर परिमाण में है । पर यह अमूल्य धरोहर छिन्न-भिन्न अवस्था में पड़ी हुई दे । जगह-जगह सन्त-साहित्य के हीरे विखरे पडं दँ, अनेकों ग्रन्थ- रत्र वर्षा, दीमक्र ओर दूमलो मेँ अपना अस्तित्व खो चुकेहं। तोमी, अभी हमारे सामने जो कु दै-यदि हम उसको भी रक्षा कर ठं तो बहुत जल्‍दी जगत हूए समना चाहिये! नहीं ता इनका अस्तित्व भी केवट पौराणिक कथा मं सीमित दहो जायगा । वतमान समय में इसकी रक्षा का सवसं सहज उपाय दै, इन्द्‌ सुन्दर रूपसे संपादित कराकं प्रकाशित करा देना | राजस्थान के संत-साहित्य में दादृपंधियों द्वारा रचा हुआ साहित्य ही विशेष है-- और यह साहित्य दादृमठों में, दादू भक्तों के घरों में और प्राचीन साहित्य-प्रेमियां के बंश्जों के पास स्थान-स्थान पर पड़ा हुआ है । महात्मा सुन्दरदासज्ी दादूजी के प्रधान शिप्यों में से थे । दादू-शिप्यों में ये सबसे अधिक विद्वान, शास्त्र पारंगत और पंडितथे। यही कारण था कि दादू-शिप्यों में आपका बहुत सम्मान था । हिन्दी-साहित्य प्रेमी पाठक आपके रचित सवंया ग्रन्थ से बहुत दिनों से परिचित हैं--पर उस महान आमा की अन्य कृतियों से विठकुछ अन- भिज्ञ। जब में अपने परम मित्र ठाकुर भगवती प्रसादसिंदजी बीसेन के साथ राजस्थानी साहित्य की. खोज के उद्देश्य से जयपुर गया--तत् हां क मुप्रसिद्ध पंडित-प्रवर पुरोहित हरिनारायणजी के पास उन महात्मा की क्तियों का संपूर्ण संग्रह-देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई । उसी समय केवल उस परमपिता परमात्मा के भरोसे पर हम दोनोंने इस ग्रन्थरत्न को प्रकाशित करने का दृढ़ संकरप कर लिया-और पुरोंहितजी से इस विपय




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