षट्खंडागम खंड 5 (1942) एसी 4957 | The Satkhandagama Vol 5 (1942) Ac 4957

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The Satkhandagama Vol 5 (1942) Ac 4957 by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) षटृखंडागमकी भस्तावना जैनियोंके साहित्यकी, और विशेषत: धार्मिक सादित्यकी, छानबीन करना पड़ती है । अनेक पुराणेंमिं हमें ऐसे भी खंड मिलते हैं जिनमें गणितशास्र और उ्योतिष्रविद्याका वर्णन पाया जाला है | श्सी प्रकार जैनि्येके अधिकारा जगमप्रन्पोमे भी गणितश्चाज्ञ या ज्योतिषविद्याकी कुछ न कुछ सामग्री मिलती है । यही सामग्री मारतीय परम्परागत गणितकी धोक है, ओर वह उस ग्रन्यसे जिसमें वद्द अन्तर्भूत है, प्रायः तीन चार झाताब्दियां पुरानी होती है । अतः यदि इम खनू ४०० से ८०० तककी किसी धार्मिक या दार्शनिक कृतिकी परीक्षा करें तो उसका गणितशास्रीय विवरण हसवीके प्रारभते सन्‌ ४०० तककरा माना जा सकता है | उपर्युक्त निरूपणके प्रकाशमे ह हम इस नोवीं शतान्दकि प्रार॑मकी रचना षटूषंडागमकी टीका धवलाकी खोजको अयन्त महत्वपूर्ण समझते हँ । श्रीयुत हीरलल जैनने इस प्रन्थका सम्पादन ओर्‌ प्रकादान करे विद्रानोको खायीरूपते कृतज्ञताका ऋणी बना छया है । गणितदाङ्की जेनक्षाखा सन्‌ १९१२ में रंगाचार्यद्वारा गणितसारसंग्रहकी खोज ओर प्रकाशनके समयते विद्यानोंको' आभास होने ढगा है कि गणितशास्रकी ऐसी मी एक शाखा रही है जो कि प्रर्णतः जैन विद्वानोंद्वारा चलाई जाती थी । द्ाठद्वीमें जैन आगमके कुछ प्रन्थोकि अध्ययनस जैन गणितज्ञ ओर गणितप्रन्थोसतबधी उछेखॉंका पता चदा है । जैनियोंका धार्मिक सादित्य चार भागेंमिं विभाजित है जो अनुयोग, ( जैनपर्मके ) तत्वोंका स्पष्टीकरण, कहलाते हैं | उनमेंसे एकका नाम करणानुयोग या गणितानुयोग, अथात्‌ गणितशाख्रसंबंधी तत्वोका स्पष्टीकरण, है । इसीसि पता चता है कि जेनधघर्म और जैनदठोनमें गणितशाख्रको कितना उच्च पद दिया गया है। यद्यपि अनेक जैन गणितज्ञोंके नाम ज्ञात हैं, परंतु उनकी कृतियां छुप्त हो गई हैं । उनमें सबसे प्राचीन भद्बाहु हैं जो कि इंसासे २७८ बपे पूर्व स्वर सिधारे । वे ज्योतिष विद्याके दो प्रन्थेंकि लेखक माने जाते है (१) सू्येप्रज्नप्तिकी टीका; और (२) भद्रबाइवी संहिता नामक एक मौखिक प्रंथ | मलयरगिरि ( लगभग ११५० ई.) ने अपनी सूर्प्रज्नप्तिकी ठीकामें इनका उछेख किया है, और भट्टोप्पल' ( ९६६ ) ने उनके प्रन्थावतरण दिये है । सिद्धसेन नामक एक दूसे ज्योतिर्षाक प्रन्थावतरण वराइमिहिर ( ५०५) ओर भट्टोत्पठ द्वारा दिये गये १ देखो- रगाचार्य द्वारा सम्पादित गणितसारसम्रहकी अस्तावना, डी, ई. रिमिथद्रारा शिखित, मद्रास, १९१२ २ बी. दत्त: गणितशार्खाय जैन शाखा, बुलेटिन कलकत्ता गगितसोस।यदी, जिल्द २१ (१९१५ ), पृष्ठ ११५ से १४५. ,. + ३ इहसंहिता, एत. द्विवेदीदयारा सम्पादित, बनारस, १८९५, पृ. २२६.




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