कहावत का पर्यालोचन | Kahavat Ka Paryalochan

Kahavat Ka Paryalochan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहादत का पर्यालोचन श प्ागन्तुक गुणो काही निदेश कराता है । कहावत का स्वरुप लक्षण बया है ? उसका सत्य ताह्विक रूप बया है ? उसकी भात्मा गया है? कहावत प्रयवा सोकीक्ति के सम्बन्ध में संक्षिप्तता, सारगभितता सथा सप्राणदा का जो उल्लेख किया गया है, वहाँ यहू भी रप्ट कर दिया गया है कि ये तीनों गुण हर एक लोकोड्ति में झनिवार्यतः नहीं पाये जाते । मते स्पष्ट दै कि इग तीनों के धार पर सोकोक्ति के र्वसूप का निर्धारण नहीं हो सकता, इन तीनों का गमावेदा लोकोक्ति के तटरथ क्षरा में प्रवद्य किया जा सकता है। लोकोछि, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, जब तक लोक की उक्ति नहो, दसौ उक्ति न हो जिसको लोक स्वीकार ररते, तद तदः उसे लोगरोक्तिकेनाम से भ्रमिहित नहीं किया जा सबसा, उसे भौर कोई नाम भते हो दिया जाएं । गेटे एवः उक्ति सीजिये : “किसी मवन म रहने कै लिए भवन-हिस्पी होना भावश्यक नहीं ।” इसमें शौकोक्ति वेः प्रय स एए है भिन्तु सोगोंकौ ठबान परनप्ारत्नेके कारणष्ि सोरीकति वा गौरव प्राप्त मे हो शा । दिलर वी उक्ति है 'पाल्तरता कात्‌ ल्य हा 1 एषा धमाप + तणा वह मो सोकोदिन बन राकी क्योकि उसो थी उक्ति रही । राजस्थानी में पूर्ने टकौ देदेएो पण भस्कल न देएी' ते लोको कितिषारदधारणकरतिया। 'मूरखहृदयनयचेत जो ए मिलहि विरंवि सम तुलमीद्षत की पट मूक्ति भी ज़ोकोति: वी शरह हो उद्धृत को जाती है, भषवा पर- स्पर वार्तापाप में प्रयुक्त होती है । इन घाराप की गड्टावत संसार की धनेक मापाधो मैं मिसती है । घीन थी निम्नलिशित कहदत भी इस गम्दन्घ में उल्तेसनीय है : 006 डिक कटाहा 80 पट, तहत 0 फंड. नाप १३ कल 16 1५१ 10 त९५॥ ४४) + ण्न ऽवं एतीकेपूरिमं जेग्यहवतमापषा एक प्रदेड-नतरहोष्ट्माहै दिने प्रेषा पन्यो षो रना १} टै 1 कदावतों पर उमने बहु बामर्पिया। उगते गेल दूसरों थी ब हावमें हो इबट्ठी महीं की, भपितु उसने पाँद सौ बहायतें इस उदय से रुदयं भी बना दातीं हि वे झागाएी पीड़ियों के बाम घाएँ, भोर इन पास शौ बहाजतों थो भी उसने घपते शप्रह में सम्मिलित इर लिया । उसके द्वारा निमित कुण बहावतों के उदाइरण सीडिए : (१) गई एक ऐसा पुष्द है जो दानद दे: बगीने में उपता है। (र) धरो एर गुसीन रयी है दौर पर बारें उसदे प्रनुदर है । उ्त दोनों उविददों दें ब हादत वे धन्य गुर तो मिलते हूँ विलु सगे पियदा भा हुए, जो बहाइत वा प्राण है, इनें मद्ी है। इनलिए हॉदर हारा गढी हुई उततियों ने भंदह थी ही ऐोमा बढारी, सोरोरित के पद पर दे घागोत से हो सभी | शॉबत हारा निधि उत्तिदोँ द्ाहोलिदों है, सोरोतियँ नहीं । बहाएत बादुतः लोकः 1. ०१ पो कप नञ 41 ४ ए सतप € भष विज शीट ककड रव न अरत्तृनत्प्‌ कपट ( १ (7४७८ [41 निपत्‌ इलाः 71 व १ सण न. 1 11




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