मोक्षशास्त्र सटीक | Mokshshastra Satik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १७ ] प्रशनावली चतुर्थ अध्याय । | विषय भष्याय चतर | कालद्रव्यका वर्णन ५ ३९-४० विप नस्या सत्न | गुणका लक्षण ५ ४१ अजीवास्तिकाय ५ ्रव्योकी गणना ५ २-३-३९ ट्र्ब्योकी विधेषता ५ ४-७ प्ययका लक्षण ५ २ प्ररनावरी पश्चम अधष्याय ।. ्रज्येकि प्रदैर्योका योगके भेद व स्वरूप ६ १ वणन ५ ८-१९ | आसरत्रकाखरर्प ६ २ द्रव्योकि रहनेका योगके निसित्तसे स्थान ५ १९-१६ आस्लवके मेद्‌ ६ ३ दन्योकि उपकारका स्वामीकी अपेक्षा वणेन ५ १७.२२ आस्रचके सेद्‌ ६ ४ पुद्रटका खक्षण ५ २३ | साम्परायिक आसवके पुद्रटकी पयय ५ यष्ट मेद ६ ५ पुदलके मेद ५. २५ | आख्रवकी विद्यॉपतामें सन्धोकी उत्पत्तिके कारणं ६ & कारण ५ २६-२८) अधिकरणके भेद ६ ७ दरेन्यका छक्चण ५ २९ | जीवाधिकरणकेभेद ६ ८ सत्तका छश्ण ५ ३० | अजीवायिक्ररणके भेद ६ ९ नित्यका चरण , ५ ३१ | ज्ञानावरण ओर दरना- पक्र ही धमेमें विरुद्ध. वरणकरे आखव ६ १० धर्मीका समन्वय ५ ३२ | असाता वेदनीयके परमाणुओंमें वन्ध आस्व ६ ११ होनेका वर्णन ५ ३३ ३७ सातवेदनीयके. आखव £ १२ द्रव्यका प्रकारान्तरसे दरनमोदनीयके » ६. १३ लभृण ५ ३८ ` चारि्रमोहनीयके +» ६ १४ 1




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