स्त्रियोंके लिए कर्तव्यशिक्षा | StrieyoKe Liye Kartavya Shiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्त्रियोंके िये कतंव्यदिक्षा द नदी चाहती, पतिकी ओरसे आदर मिले या अनादर-दोनोमे जिसकी समान बुद्धि रहती है, रेसी खीको पतित्रता कहते है । जो साध्वी खरी घुन्दर वेपधारी भी परपुरुषको देखकर उसे भ्राता, पिता ओर पुत्रके तुल्य मानती है, वह पतित्रता है । द्विजश्र् | तुम उस परतित्रताके पास जाकर उससे अपने हिंतकी बात पूछो । उसका नाम झुभा है । वह रूपवती युवती है, उसके हृदयमे दया मरी है |? यों कहकर भगवान्‌ वहीं अन्तर्धान हयो गये, इसपर ब्राह्मणको बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने पतित्रता झुभाके घर जाकर उसके विपयमे पूछा । झुभा तुरंत घरसे बाहर आकर दरवाजेपर खड़ी हो गयी | नरोत्तमने कहा--'देवि ! तुमने जैसा देखा और समझा है; उसके अनुसार मेरे हितकी बात बताओ | पतिव्रता वोढी--श्रह्मन्‌ ! इस समय मुझे पतिदेवकी सेवा करनी है, अत: अवकाश नहीं है; इसलिये आपका यह कार्य पीछे करूँगी । इस समय मेरा आतिथ्य ग्रहण कीजिये ।” नरोत्तमने कहा-'मुझे भूख; प्यास और थकावट नहीं है; मुझे अभीछ्ट वात बताओ, अन्यथा मै तुम्हे राप दे दूंगा | इसपर पतित्रता बोली-'द्विजश्रेष्ठ ! मै बगुला नहीं हूँ । आप धर्म तुछाधारके पास जाइये और उन्हींसे अपने हितकी बात पूछिये |” यो कहकर शुभा घरके भीतर चली गयी । उसकी बात सुनकर नरोत्तम ब्राह्मणको बड़ा विस्मय इः, तव ब्राह्मणवेषधारी श्रीमगवान्‌ने आकर बतटायां किं यह शुभा पतिव्रता है इसीसे यह भूत; भविष्य और वर्तमान तीनो कालंकी बाते जानती है |




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