रंजीत सिंह | Ranjeet Singh

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रामचंद्र टंडन - Ramchandra Tandan

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सीताराम कोहली - Seetaram Kohli

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिख धर्म का आरंभ श्रौर गुरो छा वणेन १३ श्रस्तित्व को बनाए रहने के निमित्त तीन बार सुगन्न सूबादारो से युद्ध करना पड़ा । इन तीनों युद्दों में गुरु हरगोंविंद का पतला भारी रहा। गुरु हरगोविंद सन्‌ १६४४ ० में इस श्रसार संसार से प्रयाण कर गए । उन के बाद उन के पोते गुरु हरराय गद्दी पर बेटे ।* गुरु हरराय ने श्मपने जीवन का अधिकांश श्राराम व चैन से ब्रिताया । सन्‌ ११९१ ई० में उन की ख़त्यु पर उन का छोटा लड़का हरकिशन गद्दी पर बेठा । परंतु उस की ख़त्यु थोड़े ही समय में हो गई। सन्‌ १६६५ ईं० में गुरु तेरा बहादुर ने गद्दी संभाली । दस साल के बाद सन्‌ १६७५ ई० में श्नौरंगज्ञेब ने इन्दं दिर्ली बुला कर क्रष्ल करा दिया । गुरु गोविद सिंह--सन्‌ १६५५ ई० से सन्‌ १७०८ ३० तक गुरु तेऱा बहादुर के बाद उन का बेटा गोविंद्राय ( गोविंद सिंह ) गही पर॒ शोभायमान हु । गुरु गोविंद सिखें के दसव श्रौर अंतिम गुरु थे। उस समय उन की श्रवस्था केवल्ल पंद्रह वषं की थी। वहं वाल्यावस्था से ही बडे सुयोग्य श्रौर दूरदर्शी थे। पिद्ध॑ले सन्तर वषं (सन्‌ १६०६ ई० से सन्‌ १६७१ ई० ) में उन के वंश श्रौर पंथ पर जो कठिनाइयां पड़ीं वह सेब उन के सम्मुख थीं । उन के परदादा गुरु जन देव श्रौर दादा गुरु हरगोविंद पर जहाँगीर ने जो कष्ट पहुँचाए थे घद्द उन से बे-ख़बर न थे । सिख इन घटनाओं से पहले दी बिगड़ चुके थे द्मव गुरु तेरा बहादुर की हत्या ने उन्हं सरकार से श्रौर भी विञयुख श्रौर ज़िंदगी में ही सृत्यु पा लुका था । हरराय इसी का बेटा था । एक बेटे का नाम तेग् बद्दादुर था जो बाद में १६६५ इ० में गद्दीनशीन हुआ ।




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