आयकर विधान तथा खाता | Aaykar Vidhan Tatha Khata

Aaykar Vidhan Tatha Khata by एस० एम० शुक्ल - S. M. Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ११ डक प्रकार ने समझी जाय तो सारा अ्राय-कर श्रधिनियम व्यथं हो जायगा । यही कारण है कि करदाता की परिभाया को इस अधिनियम रे मद्वयं माना ग्रा : करदाताओं का वर्गीकरण (0८188घ्ह८8घ०० ० ‰55€8९८९5)-- करदाता के महत्त्वपूरणों होने के कारण, जैसा कि ऊपर समभाया जा जुका है, झाय-फर अधिनियम में इनका नीचे लिखा वर्गीकरण किया गया है :-- (श्र) एक व्यक्ति (एताव्‌), (व) हिन विभाजित परिवार (तप एातारात९ते णठ), (स) फर्म (षाण), ( द) स्थानीय सरकार्‌ (1062) & पण पफ), ( य ) कम्पनी (000 ए8ए), (फ ) व्यक्तियों के झन्य सच (00087 औै.55008707 0 2675078) ध्यक्ति (९४8००) व्यक्तिः की परिभापा- प्राय-करे द्यधिनियम कौ धारा २ (६) के भ्रनुसार्‌ “व्यक्ति मे हिन्दु ्रविभा- जित परिवार श्रौर स्थानोय सरकार सम्मिलित है ।”” अधिनियम की दी हुई यह परिभाषा स्पष्ट नहीं है। वास्तव में व्यक्ति का श्रोशय एक व्यक्ति, हिन्द विभाजित परिवार, स्थानीय सरकार, व्यक्तियों का सध आर कम्पनी से है । स्थानीय सरकार का प्राशय म्यूनिसिपल दोर्ड, डिस्ट्रिंट बोर्ड झर पोर्ट ट्रस्ट झ्रादि से है 1 आय कर अधिकारी एक पागल व्यक्ति को भी व्यक्ति की परिभाषा मे लेते हैं, क्योकि यदि पागल व्यक्ति दाय-कर भ्रघिनियम में व्यक्ति स माना जाय तो बहुत से करदाता कर देने के समय पर अपने को पागल बना लेंगे । अययस्क (070१) सी आय-रुर झविनियम में व्यक्ति मादा जाता है । एक पागल श्रौर अझदयस्क दोनो ही आय कर के लिए व्यक्ति माने गये हैं । यह निर्णय एर ए४. हरेंटरा फिट ए0फ्पएइडा0ए९४ के मामले में सन्‌ १९४६ में दिया गया था । शफ शे, टप चि ही शरिमापया करे इस फरार उपयोा उपतते हैं कि कोई मी व्यक्ति, जिसकी भय बाय कर ब्रधिनियम के झनुसार कर देने योग्य होगी, वही व्यक्ति करदाता मान लिया जायगा, चाहे वह झवयस्क हो या पागल या अन्य प्रकार वा उसमें कोई दोप हो । परिभाषा का महत्व-- करदाता कौ परिभाषा समने के लिए. “ब्यक्ति' की. परिभाषा समभता अत्यन्त आवश्यक है, क्योकि करदाता को परिमाया में व्यक्ति शब्द का रयोग




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