विभक्ति-संवाद (1941) | Vibhakti-Sanvad (1941)

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Vibhakti-Sanvad (1941) by उपाध्याय जैनमुनि आत्माराम - Upadhyay Jainmuni Aatmaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नमोत्थुण समणस्स भगवभो मद्दावीरस्स पूवर्ध सावन का महीना है । आकाश में चारों ओर धनघोर घटार्पँ उमङ़ रही है । मेषं की गम्भीर गजना से दसो दिका मुखरित हो रही हैं । शीतल, मन्द पवन के झोंके आ रहे हैं । गरीष्म ऋतु में सूय के प्रचण्ड ताप से उत्तप्त भूमि अविच्छिन्न जलघारा के द्वारा शान्त हो चुकी है। प्रकृति-नटी वर्षा ऋतु का नवीन परिधान पहन कर विश्य के रज्ञमश्च पर एक नया खेछ खेलने में प्रवृत्त है ! चम्पा नगरी का पृ्णभद्र-उद्यान आज अभिनव सौन्दय से सुशोभित है । प्रत्येक वृक्ष अपू्व शोभा को धारण किए हुए है । वैद्यराज मेघ ने जलधारा से सिंचन कर मानों वृक्षों का काया-




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