पउमचरिउ भाग-3 | Paumchhriu Vol.iii

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Paumchhriu Vol.iii by देवेन्द्र कुमार जैन - Devendra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तियालोसमो सचधि [ ४ ] यह सुनकर विराधितने हर्पपूवक कहो? स्‍्तातर ले आओ । सचमुच में धन्य हुआ कि जो किष्किधानरेश, स्वयं अभिमान छोड़कर मेरी शरणस आये ।” तब सम्मानित होकर दत्त चापस गया और आनन्दके साथ अपने स्वामीकों लेकर फिर आया । इतनेमें तूयं-ध्वनि सुनकर राघवने विराधितसे पूछा; “सेना लेकर यह कोन रोसांचित होकर आता हुआ दीख पढ़ रहा ह ।2 यह्‌ सुनकर नेत्रांनददायक चन्द्रोदर पुत्र विराधितने कहा; कि सुप्रीव ओर वाछि ये दो भाई-भाई है । उनमेंसे वड़ा भाई संन्यास लेकर चढछा गया है । और इसको किसी दुष्टने पराजय देकर चनवासमे डारु दिया है । यह्‌, सुररवका पुत्र, विमलमति तागका स्वामी ओर वानरध्वजी; वदी सुव दै जिसका नाम कथा-कहानियोमे सुना जाता हे 11 १-६॥ [५] इस श्रकार राम-खछच्मण ओर चिराधितमे वाते ददी रही थीं कि उतनेमे उन्दने सुप्रीवकोवेसे दही देखा जेसे आगम चिक ओर त्रिकाल को देखते है! आते हुए वे ऐसे लगे मानों चारों दिग्गज एक साथ सिल गये हो | जाम्ववन्तने उन्द्‌ वंठाया । तढ्नन्तर आदर पूर्वक छदमणने सुप्रीवसे पूछा कि तुम्हारी पत्नी का अपहरण किसने किया । यह्‌ सुनकर जाम्बवन्त अपना माधा भुकाकर सारा वृत्तान्त सुनाने खगा । (उसने का) कि जव सुप्रीच वनक्रीडा फरतके छिए गया था तो माया सुप्रीव उसके धरम घुस फर यठ राया 1 वालिका अनुज सूप्रीव जव अपन मन्तियोके साथ घर लाटा तो कोई भी यह पहचान नहीं कर सका कि उन दोनोमें असली राज्ञा कोन है । सबके मनमें आश्यय हो रहा था । इतसमें कुतृहुड-जनक दो सुप्रीव देखकर; असली सुप्रीवकी सेना हृपसे




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