उपासकदशांग और उसका श्रावकाचार | Upaskdashang Aur Usaka Shravakachar

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Upaskdashang Aur Usaka Shravakachar by सुभाष कोठारी - Subhash Kothari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आगम साहित्य भौर उपासकदशांग ५ जागम साहित्य इतना विपुल व समृद्ध है किं उसमे दाशंनिक चिन्तन के साथ साथ श्रमणो एवं श्वावकों के मआचार-विचार, त्रत-संयम, त्याग- तपस्या, उपवास-प्रायरिचत्त आदि के उपदेशों के साथ इन्द स्पष्ट करनेवाङी 'छोक प्रचलित कथाओं व दूष्टान्तों के वर्णन भी भरे पड़े है । इसके भरावा उनसे महावीर आदि तीर्थकरों के जन्म, तपश्चर्या, त्याग, संयम, संन्यास जीवन व उनके उपदेश, विहार-चर्या, शिष्य-परम्परा, तथा आर्यं क्षेत्र की सीमा, तत्कालिक राजा, राजकुमार, अन्य मतावलम्बी भादि की जानकारी भी प्राप्त होती है । कलाओों की दृष्टि से वास्तुकला, दिल्पकला, ज्योतिष-विद्या, भूगोल, 'खगोल, संगीत, नाट्य, प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान भादि विभिन्न विद्याओं से जैन-आगम साहित्य पर्याप्त रूप से समृद्ध है। इस तरह भागों की विशद गौर व्यापक सामग्री का गहराई से अध्ययन किया जाय तो इसके महत्त्व का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। स्थूल रूप से इसकी उपयोगिता को निम्न वर्गो में बाया जा सक्ता है ~ (१) भघ्यात्मिक मुत्य-जेन आगमो का मूर उद्देष्य ही भाध्या- त्मिक शांति प्राप्त करना रहा है) इनमे सामान्य जन-जीवन के किए आतम साधना का सररतम मागं प्रस्तुत है । “डॉ० हर्मन जेकोबी, डॉ० शुत्रिग आदि भी इस तथ्य को स्वीकार करते ह कि जैनागमों मे दशन एवं जीवन, आचार एवं विचार, भावना एवं कर्तैव्य का जेसा समन्वय है, वैसा अन्यं साहित्य मे नहीं है । * इसी कारण जेनागमों ने अहिसा, सत्य, अचौयं, ब्रह्मचयं, अपरिग्रह, अनेकान्त को प्रचारित फिथा है । (२) दार्शनिक-दृष्टि-जैनागमों म सूत्रकृतांग, स्थानांग, भगवती, समवायोग, भ्ज्ञापना, राजप्रश्नीय एवं नन्दी सूत्र पसे आगम ग्रन्थ हैं, जिनमे दांनिक सिद्धान्तो का प्रतिपादन किया है । सुत्रकृतांग मे परमताः चलम्बियों का निराकरण कर स्वमत की स्थापना की गयी है। उसमें जगत्‌ की उत्पत्ति ईश्वरीय न होकर अनादि अनन्त है, इस सिद्धान्त.को पुष्ठ किया गया है। भगवती सुत्र में आत्मा, पुदुगल ज्ञान के प्रकार, नय आदि का विवेचन है | १. शास्त्री, देवेन्द्र मुनि-जैन भागम साहित्य मनन भौर मीमांसा, पृष्ट ४




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