सूर्यलोक | Suryalok

Suryalok by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र दानाः के ्ारांस से बैठ जाने पर चैने बात चलाते हुए कंहा, “रोप लोगों ने जो यहाँ छाने की तकलीफ की उसका धन्यवाद । ऐसी सरदी में बाहर निकलना वाक़ई बड़े जीवट का काम हे ।”' दोनों में से किसी ने उत्तर नहीं दिया बल्कि कु'वर साहिब ने बड़े इत्सीनान से अपनी जेब से तस्बाकू का डिब्बा निकाला और अपने पाइप में तम्बाकू भर कर उसे दियासलाई जलाकर सुलगाया । दियासलाई के प्रकाश से कवर साहिब को साराप्मुख उज्ज्वल हो उठा श्रौर सहसा मेरा ध्यान उनकी सुन्दरता तथा मुख की गठन की ओर गया । कितना छन्द्र ओौर दृट्‌ था वह युख । शांत तथा दृढ़ सुख, किताबी चेहरा, सांचे में ढला अज्ञ; बड़ी बड़ी भरी आंखें, सुनददरी बाल, छोटी सी फ्रैचकट डाढ़ी, पुरुषोचित सुन्दरता की अनुपम छुवि थी । जैसी सुन्दर मुख की गठन थी वैसा ही सचि मे ढला उनका शरीर भी था । इतने चौड कन्धे.ौर छाती की इतनी पुष्ट सांस पेशियाँ मेरे देखने में बहुत कम थाई हैं। कुबर साहिब की गठन ऐसी है कि ६ फीट ३ इंच उनका करद्‌ होने पर भी वह बहुत लंबे नहीं.सालूस पडते हँ । छ वर साहिब की ओर देखते हुए युम सहसा विधार आया कि मेरा छोटा दुबला पतला शरीर श्र. सूखा युरभाया सा चेहरा उनके पुष्ट तथा स्वस्थ शरीर के मुक़ाबिले में कितना भद्दा और अजीब लग रहा था । बाप एक दरसियाने कद के दुबले पतले; सूखे पीले चेहरे वाले 2२-५४ वर्ष के एसे मनुष्य की कल्पना कालिये जिसके लंबे लवे दुवे पतले हाथ दयं, बड़ी बड़ी मरी झांखें हों, शिर पर छोटे छोटे खिचड़ी बाल, छूछे चुरुश की तरह खड़े हों 'और जिसका वज़न केवल १ मन १४ सेर हो । इस तरह आप मुम लाल बसंतसिंह की कलप्रना कर सकते है जिसे साधारणतया लो शिकारी लाल साहिब कह कर पुकारते हैं या जिसे अफ्रीका के आदिवासी सेकुमाज्न कहा करते थे और जिसके सम्बन्ध में अफ्रीका के घोर बनों में निवास करने बाले आदिवासियों के वीच यह्‌ जनश्रुति फैली हुई है कि बह रात्रिको भी दिन ही की भांति देख सकता है । | मेरे दूसरे भित्र केष्टिन संप्रसाद हम दोनो से भिन्न है, साधारण कद, खुलता सांवला रंग, भारी बदन, तेज़ चमकीली काली असिं यौर एक आंख पर लगा हुता चश्सा । सु यह्‌ कहते दुख होता हे कि दरु




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