प्रमेयरत्नमाला के अनन्तवीर्य | Prameyaratnamala Of Laghu Anantavirya

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Prameyaratnamala Of Laghu Anantavirya by पंडित हीरालाल जैन - Pandit Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्वावना १३ वौद्धौ कौ एक मान्यता यह भी हैकि रब्दि का वाच्य अधं नहीं हैं, क्योकि. शाब्द धौर थर्य' में कोई खम्बन्ध 'नही है । उनके अनुसार दब्द का वाच्य अपोह्‌ या अन्यापोह है भन्पपोहुका अर्थ है विवक्षित वस्तु से अन्य का अपोह ( निषेध ) । जैंसे गोशब्द का वाच्य गोव्यक्ति न होकर अगोव्यावृत्ति है । गौ से भिन्त अन्य समस्त पदार्थ बगी हैं । गोशब्द भाय में अगो की व्यावृत्ति करता है। अर्थादु यह हाथी नहीं है, घोड़ा नहीं है, मनुष्य नही है, इत्यादि प्रकार से अग्ये का नियेध करता है मौर मगो का निषेध होने पर. जो शेष वचता है उसका ज्ञान स्वत ( शब्द के धिना) हो हो जाता है। इसी प्रकार बीद्ध दाव्द को. चक्ता के अभिप्राय का सूचक भी सातते हैं, बयोकि धटराब्द मे ऐसी कोई स्वाभाविक मोग्यता नही है निससें बह जलधारणसमर्थ घटलूप अर्थ को ही कहे। वदद ( घटशब्द ) वक्ता की इच्छानुसार अदव मे घटदाव्द का सकेत करके अदव को भी कह सकता है । मदि कोई व्यक्ति घटशब्द के द्वारा अस्व को कहा चाहता है तो बह पैसा सकेत करके वैसा कह सकता है । इसमें कोई भी वाधा नहीं हैं । सुन्रकार ने आगम प्रमाण के लक्षण में जो अर्यज्ञान पद दिया है उसके द्वारा अन्पापोह ओर अभिपायसूचन का निरा किया गया है। शब्द का वास्य अन्यापोह या. अभिप्रायसूचन नहीं है किन्तु अर्थ है । अन्यापोह को शब्द का चाच्य मानने पर मनेक विप्रतिपत्तियाँ आती हैं । जो इस प्रकार है-ए गोदब्द के सुनने पर उसो समय सामने स्यित गायरूप गयं में प्रवृत्ति होती है। यदि गोशब्द वा. बाच्य गाय न होकर अगोब्यावृत्ति हो तब तो गोशब्द के सुनने पर कुछ देर बाद गाय मा ज्ञान होना चाहिए, बयोक्ति झगोव्या- चृत्ति करने में कुछ समय तो लगेगा ही । दूसरी बात यह है कि अगोब्यावृत्ति करते समय भी गो का ज्ञान आवश्यक है । गी के ज्ञान के बिना जगो का ज्ञान केसे होगा और अगो वा ज्ञान न होने पर उसकी ब्यादुत्ति भी कैसे होगी । अत द्रविड प्राणायाम को छोटकर गोशब्द गा वाच्य सीधा गायरूप अथं ही मानना सुक्तिपगत है। इसी श्रवार अभिप्नायसुूचन को भी दन्द का वान्य मानना १ यदि घट दयं ब्द स्वभावादेव कम्बुग्रीवाकार जलधारणसमर्थ पदा्य॑मभिदधाति त्क्य सकेतान्तरमपेदय पुश्पेच्छया चुरमादिकम- भिदध्यातु्‌ 1 ** * वक्तुरभिभ्रायं सूचयेयु शन्दाः ! -तर्कभाषा नान्तरयकठाऽभावाच्छन्दाना वस्तुभि खट्‌ । नायंसिंदिस्तितस्ते दि वक्यभिपाययूचका ५५ --प्रमाणवातिक ११२१५




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