विनय पिटक (1635) एसी 727 | Vinay Pitak (1635)ac 727

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Vinay Pitak (1635)ac 727 by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ | प्रस्तावको दुहदराते हुये उसके विपक्षमें बोलनेके लिये तीन बार तक अवसर दिया जाता था, जिसे अ न - श्रावण कहते थे; और अन्तमें श्रा र णा हारा सम्मतिके परिणामकों सुनाया जाता था । अन्य पुराने प्रंथोंकी भाँति इस विनय-पिटकमें वर्णित विषयोंकी सुर्खी देनेंका ख्याल बहुत ही कम रनखा गया है । वस्तुतः यह प्रंथ तो कंटस्थ करनेवालोंके लिये था, और उनके लिये सुखियाँ उतनी आवश्यक न थीं । मेंने सभी जगह अपेक्षित सुखियोंको भिन्न टाइपोंमें दे दिया है। अपने पहिलेके अनु- वादोंकी भाँति यहाँ भी अन्तमें विस्तृत परिशिष्ट दे दिया है । यदि पाठकोंकी सहायता प्राप्त होगी, तो रह गई शरुटियोंको दूसरे संस्करणमें ठीक कर दिया जायेगा । ल्हासा ) उन बज है राहुल साकृत्यायन र




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