नारी एक - रूप अनेक | Nari Ek - Roop Anek

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Nari Ek - Roop Anek by स्वर्ण सूदन - Svarn Soodan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नेहो बोली क्यो 1, जितना काम दूसरे वालिस्टयर करते हैं उतना तो मैं भी कर लूगी । उनके उत्साह को देसरररवहा बैठे लागो वी हँसी थम गई। कित्तु हमारा नियम है वि हम 21 वप से पहले किसी को झपना सदस्य नद्दी बनाते ।” इदिरा जी कौ यहु वात भ्रच्यी नही लगी ॥ मातशुमि की रक्षा व सेवा के लिए झ्राजादी के लिए लड़ने की हर किसी को झवसर मिलना चाहिए 1 *' जानप्राफमप्राक' कृ श्रपना झादश मानने वाली बहन की भ्रात्या कायर नहीं बनना चाहती थी” मैं अपनी बाय्रेस स्वय वनारी 1 ' इंदिरा ने माँ से प्रा था. इसको क्या नाम दू । “'वानर सेना” माँ न उत्तर दिया । एक बार तो इदिरा जी ने इसे ष्यगात्मक समभा किन्तु मा वमलाने समभा दिया जैसे बदरो तेलक को जीतने मे राम की मदर की भौर रावण को मारा, ऐसे ही तुम बापु की मदद करना 1 पुलिस कौ वाहर भीतर कौ हलयनो को नताभ्रो तक स नेताझो की सरंगमियो का उनके क्रातिकारी साथियों तक पहुंचाने का काय इृड् व उसकी वानर सना ने भपने ऊपर लिया । स्वय वह कहती हे “वानर सेना का नाम था पुरुषों था वयस्को वा काम हलवा कराया जैषे राष्ट्रीय ण्डा सीना, उह सूनाना, तागोके लिए खाना वनाना, वटका भौर रैलियों के घेराव, पानी पिलाना, जो की लिवना नहीं जानते उनको श्रोर से चिट्ठियाँ लिखना भीर पुलिस लाठी चाज मे. घायल हुए काग्रेस सेवादलत के स्वयं सेवको को प्राथमिक चिकित्सा करना 1 (जीवन के कुछ पृष्ठ है) “बाद में हमने सत्याग्रह जे से झा दौलनों में भी भाग लिया । “मुके अपने पिता के वॉप्रेसाध्यक्ष पद पर पटुचने की श्रच्छी तरह से याद है । भ्रधिवेशन मे ' पूर्ण स्वराज्य” कै लक्ष्य की धोपणा की जाती थी उस प्रस्ताव का मसविदा मेरे पिता ने तैयार किया था । टाइप होने के बाद मैं उसे पढ़कर वोटर से अपने पिता को सुना रही थी । बाद मे पिता ने कहां अब तुम दमे पठ चकौ हो इसलिए इसमे यथन मद्ध भी हो गई हो 1” ( 2 )




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