श्रीमद् राजचंद्र | Shrimad Rajchandra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
418
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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आवती कालनी वात शामाटे जाणी शकतो नथी ?
तुजे इच्छे छे ते शामाटे मठ्तुं नथी!
चित्रविचित्रतानुं प्रयोजन झुं छे
जो तने असित प्रमाणभूत रागं होय जअने तेना मूठतत्त्वनी आशंका होय तो
नीचे कहुं छुं.
स्वं प्राणीमां समदृष्टि,--
किंवा कोई प्राणीने जीवितव्यरहित करवां नदी, गजा उपरांत तेनाथी काम लेवुं नदीं.
किंवा मदपुरुषो जे रसे चास्या ते.
मूक्तत्त्वमां क्यांय मेद नथी, मात्र दृष्टिमां मेद छे एम गणी सद्य समजी पमित्र
घर्ममां प्रवत्तेन करने.
तुं गमे ते धर्म मानतो होय तेनो मने पक्षपात नथी, मात्र कह्देवानुं तातयं के
जे राहथी संसारमठ नाश थाय ते भक्ति, ते धर्म अने ते सदाचारने हुं सेवजे.
- गमे तेटलो परतंत्र हो तोपण मनथी पवित्रताने विस्सरण कया वगर आजनो दिवस
रमणीय करने.
आजे जो तुं दुष्डरृतमां दोरानो हो तो मरणने समर.
तारा दुःख सुग्बना बनावोनी नोध आजे कोइने दु.ख आपवा तत्पर थाय तो संमारी जा.
राजा हो के रेक हो-गमे ते हो, परंतु आ विचार विचारी सदाचार भणी भावजो
के मात्र आ कायानां पुद्ठ थोडा वखतने मटे साडात्रण हाथ भूमि मांगनार छे,
-उं राजा हो तो फीकर नहीं, पण प्रमाद न कर्. कारण नीचमां नीच, अधममां
अधम, व्यमिचारनो, गर्भपातनो, निर्वनो, चंडारनो, कसादनो अने वेश्यानो एवो
कण तुं खाये. तो पीट
- प्रजानां दुःख, अन्याय, कर एने तपासी जै भजे यखां कर. तुं प्ण हे राजा।
काठछने घेर भवेो परोणो ठे.
वकील हो तो एथी अधां विचारने मनन करी जजे.
श्रीमत हौ तो पैसाना उपयोगने विचारजे. रख्यानु कारण आजे शौषीने कटेजे.
धान्यादिकमां व्यापारी थती असंख्य रिसा संमारी न्यायसंपनन व्यापारमां भाजे तारं
चित्त संच.
जो हुं कसाई होय तो तारा जीवना सुखनों विचार करी आजना दिवसमां प्रवेश कर.
ओ तं समजणो बारुक होय तो विद्या मणी अने आज्ञा भणी दृष्टि कर्.
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