वैदिक धर्म | Vaidik Dharm

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vaidik Dharm by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

Add Infomation AboutShripad Damodar Satwalekar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
नूतन वषंकी मंग कामना [ डेन्नहन- भ, भ पुर्‌ दोन दिधावावस्पति, भद ( गुजरात ) ] शरै नान्न कड लन संकयाकी बढ़ती मारतका दी नहीं बड़िक दुनियाके तश्वचिस्तकों, वैज्ञानिकों कर सभी ज्गन्नाय- कोडा महान्‌ युग-प्रझ्न हो गया है । विविध समस्याएं इस प्रझके साथ सदी हुई हैं भर हो रदी हैं । दूरदेक्षी महिं दुयानंवुने क्पनी झगाठ योगविद्याके बढसे इस भावी चित्रको देख लिया था, जिसकी वजहसे माजसे कई वर्ष पूर्व से, १९३२ से इस दियामें सन्होंने इगारा कर दिया था! हि, भव पापाणके जड़ देवोंको प्राण विहीन प्रतिमानोंकी पूजा लचेनासे कुछ सी फली भूत ब होगा) कक्ष्य इतनी षवशे देसे धर्मको गंगाके बटमे वाके मानवकहाको मदिरो प्रस्धापित करना होगा] प्राणी और भाणवानोंकी प्रतिष्ठा-सेवा करना सीख छेना भौर ्टतकषकि यये सद्‌ गुणोकि। प्रहण कना होगा । शष कटु -सस्य सुनके छोग ठमके इपर धूर, कंकर रेके, पत्थर फेंके, धूढ भोर रेत श्डके धूरुधूप््ति किये, भप- ष्ठो भोर भदरीरताश्टो वषं को, राठी त्वार चराई, जहरीछा सौप केषा, अर्मे कडा भर भाचिर जहर देने भी मे दिचकिचाये ! फिर भी निर्भयतासे भाजनम यहो मुख्य सुर नके जोवनसे घुनाहं देता एदा कि जड दुगड. बाव।को ददना-देरर जिन्दोका से वा-सन्मान करना सी थो | निमेष भौर नम्रतासे यददी बात वावा बोन भरने डेष प्रवचनोंमें कही । ज्नगधंश्या जगतूमें जब बढ़ रही हो शोर मसंबय चेतन आर पाणवान्‌ प्रतिमाएं प्रथवीपटको ठसाठस भर बडी हों, तब भतो मूर्तेयोंक। सजेन कर करके कोमती मदठों भार मकामोंको उनके लिये रोके रखना कया कोइ बुदिमानोंका काम है। ऐसी अवेतनोंडी सेवामें छगे रहनेसे भर 'चेतनोंको बपेकासे सामवठाकी भवनति हो होगी कि दूसरा कुछ ? बयोंकि कुतोंकि बच्चे जेसी जमात वेदा होती ही बहतो है। 6.8.83... /.8.5/1.3. मी पिछली ज्ञमातकों झंझटका सवाक बना रहें, यह स्थिति वास्तविक नहीं है । प्रथम पुत्र भी पि तरह कवौ अमा की जिम्मेदारी केके पिंताकों मुक्त करनेमें बसमये ही पाया जाता है | क्योंकि शप्तका भपना मी तो संसार बढ़ने छगता हो है । इसी तरह पिता ज्यादाखे ज्यादा पकड़ में आता ही रहता है । यों पिछछी जमातकों डिकामे छगानेमें ही भपनी जिन्दगी पमा होती है नौर सीधा स्मझानपे पहुंच जाता है। भालिरजो कायं करनेको पंसार नयाय, वहप्रसृहा डपकारी सम॑ भपूणं भविकसित दक्षत हो छोडके स्व चाम सिधघार जाना पढ़ता है । यों मनुष्य बच्चोंकों वेदा कके उनका पाठन-पोषणके सिवाप उयादा कुछ भी नहीं कह सकता । परिणाम स्वरूप प्रजा कच्छ स्करोति वंचित रहती है भौर रह रद है | रनका नैतिक स्तर नीचा जा रद्द है । सच्चा उपदेश उनको मिलना दुरंम होता जा रहा है। नाजकल तो सुतकॉंकी मूर्तियां देखना दुक्षन ( 0) करना कह जाता है भौर उसमें ही धमकी इठिश्री हो रही है । अध्ययन, मनन कौर योग छूटता जा रहा है। केव मूर्तिमें मनरंजन करना प्रजाके पे पढ़ा हुभा है फिर घर्मका प्रभाव युवकों जोर भाघुनिक नयी प्रजामें कैसे जमेगा 1 भव नहें प्रजाक। नेतिक सता उठाके डमके मगकों उपर डढाके अरविन्दकी परिमाषामें मतिमामतमें ( अतिमानध- में ) छेजाना हो हो बहू संततिके अनिश्से जनताकों सचेत करके ऋषिप्रणाछी युक्त संयमकी परंपराको जपनाना होगा। दाश्रालय इंगसे संतति नियमन करवके अष्ाचाते इकेढ देनेवाष्टी घरकारी दीति-नीदिष्ठो मी घाय श्राथ कछकार- माही होगा। देषा होगा ठमी लरदिष्टुको ' फिकॉलोफी ' ( तत्व ज्ञान ) हजम होगा। तमी दयामदका दीपावकी दिन बहीद दोके, दिया हुआ वेदाका-' बैद्कि-धम ' संद्रावें




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now