खाली कुर्सी की आत्मा | Khali Kursi Ki Atma

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Khali Kursi Ki Atma by लक्ष्मीकान्त वर्मा - Laxmikant Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डाँ...हाँ यहीं डाक्टर मेजर नंवाब...आप इन्हें क्या समझते हैं जनाब... इनकी एक टाँग टूट गई है और इनका हाथ लगातार लिखते रहने से धिकृत हो गया था जिसे इन्हींने महज इसलिए कटवा दिया है; ताकि यह चीजों को महज लिखें ही नदीं हजम भी कर सकें, सोच-समझ भी सकें...और अब इनकी जिन्दगी कया है, एक मजाक है जो जीने जर मरने से भी रही... और फिर एक जोर का शोर हुआ... प्लेटफार्म पर भीड़ ठग गईं...स्टेशन से काफी लोग एक स्पेशल ट्र न में घटना-स्थल की ओर जाने रगे । थोड़ी देर में प्लेटफार्म पर मौत का-सा सन्नाटा छा गया । हर दिद्या से हर तरफ से केवल खामोदी ही सॉँथ- साँय करने लगी और जब मरीजों की कुर्सी पर लेटा हुआ अपाहिज डाक्टर कमरे में आया तब तक केवल एक खटके के कारण दीमक मोटी किताब में और खटमल उसी मेज की दराज में चले गए । मैं अकेली रह गई.. .केवल अकेली । मेरे मन में भी इन दोनों की बातें सुने-सुन कर अनेक भावनाएं उठने ठगी थी । मेरे दिसाग में तो पास वाली पुलिया की दुर्घटना गूंज रही थी । अनगिन आदमि्ों की जिन्दगी महज तीन अगुरु पटरी से सरक कर आज समापस्प्राय हो. चकी थी...कितने ही मौत के घेरे मे चित्त पडे होगे ओर वह जो बचे होगे वष्ट भी मोत के घेरे के बाहर ओधे पड़े अपनी ससं गिन रहे होगे । कितना कम फासरा जिन्देगी और मौत के बीच है...देखिये न, म इस बीच जाने क्या-क्या सोच गई, जने क्या- क्या मने कह डाला लेकिन मेरी हराम हुई नींद ने जिन्दगी की एक बात भी ठिकाने से नहीं सोची । सइसा मेरी नजर वेटिंग रूम के बाहर जा पड़ी...इस घाव घृष्प जे घियारी रात में दो पैटमेन आपस में कुछ बातें कर रहे थे...उनकी आवाजें कान में पड़ीं-- 'सुना चौदह अप से बारात आने वाली थी... “तो क्या हुआ, मौत--दादी, बारात, खुशी, गमी का--इंतजार नहीं करती ।' “तब तो सारे बाराती परीद्ान और तबाह हो गये होंगे...” “सारे के सारे क्यों तबाह होंगे... जितने आदसियों की जिन्दगी मौत को लेनी होगी उसने ले लिया होगा...बाकी तो बचे होंगे... .. “तुम्हारा मतलब जिन्दगी और मौत का कोई नियम नहीं है... बस होना छोता है इसलिए हो जाता है...” दूसरा वैटमैेन जो बद्ध था चिलम की एक रम्बी कदा खींचते हुए बोला-- “जये की कौड़ी की तरह आदमी की जिन्दगी भौर मौत का भी सवाल हे... मेरे बच्चे, अपनी सदी में होते हुए भी, खुद ही उनको संचालित करने पर भी तुम निश्चय नहीं कह सकते कि कौन कौड़ी चित्त पदेगी ओर कौन पट. ..!” १६




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