सूरजमुखी के फूल | Surajmukhi K Phool

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Surajmukhi K Phool by राजेन्द्र किशोर - Rajendra Kishor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गगा * £ माभी की नीद श्रव करीब-करीब दूटं गई थी । बोलीं--“क्या पूछते हो, लाला ! परेशान हो गई हूँ। दिन में कोई सौ बार राजा नरसेन की कहानी सनानी पडतो है, फिर भनी इसका जी नहीं भरता ।”' मेंने अँगड़ाई लेते हुए किचित हास्य के साथ कहा-“तोसुनादो न। क्या जाने उससे मुभे भी नींद श्रा जय्य । थोड़ी देर खामोश रहते के बाद एक विचित्र लयमेभामीने मीनी के कपाल पर थपकियाँ देते हुए राजा नरसेन की कहानी शुरू कर दी--““गौरेये ने कहा-- सुन राजा, मेने श्राज तक वुभसे कुछ नहीं छिपाया है । मगर इतनी कृपा सुक पर कर कि इस दाल के ठुकड़े का राज़ मुमसे मत पूछ |” उधर मीनी, इधर मैंने हूँकारी भरी । भाभी ने आगे कहा--“मगर राजा ले जिद पकड़ ली । कहा-- नहीं वुभे बताना ही होगा, वभे मेरी कसस्न ! उधर मीनी, इधर मैंने हुँकारी भरी । भाभी ने क्रिस्से को आगे बढ़ाया--““गौरैये ने राजा की बात सुनी और चीख उठी--“'राजा, तू मुझे मार डाल, मगर श्रपनी कसम मत द । में मर जाऊँगी, मगर तुभे इसका राज्ञ नहीं वताऊगौ, कमी नहीं बताङंगी । मैने जिस किसी को इसका याज्ञ बताया है, वह दुनिया से उठ गया हे! उधर मीनीने कारी भरी, इधर मेरे सारे बदन में बिजली कोष गई । मैं कोंके से उठा श्रौर मामीकाबदन कंमोरते दूए चिल्ला उठा-“बिन्द कर दो भाभी, यह कहानी बन्द करदो! माभी घबरा कर उठ बैठीं--“'क्यों ? कया दुआ ? अभी तो कहानी सुनाने को कहते थे ।”” “हुँ, सगर श्रव बन्द कर दो |” मैंने बुरी तरह हॉफते हुए. कहा-- “नहीं तो में पागल हो जाऊगा |”




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