गाँधी विचार रत्न | Gandhi Vichar Ratn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ गांधी- विचार-रत्न
कारण बढ़ता है, जो ईइवर का नाम लेते हैं, ईदवर का काम करते हैं, ईश्वर
का स्तवन करते है, उपवास ओर ब्रत करते हैं और ईश्वर से आरजू करते
रहते हैँ कि है भगवान, हमे, रास्ता नहीं दीखता, तू ही दिखा ! तव लोग
कहते हैँ कि वह् तो भक्त है ओर उसके पीछे चकते हैँ । धमं इसी तरह
बनता है । मारकर कोई धमं नहीं पनपा, मरकर ही धर्मं पनपता है ।
यही धमं की जड़ है ।
प्रा० प्र० १, ६०
४५. धर्म का पालन यह है कि हम सीधे रास्ते पर चलें ।
प्रा० प्र० १, १९०
४६. जो बहादुर होते हैं उनको किसी की मदद की ज़रूरत नहीं होती ।
उन्हें केवल ईश्वर की मदद होनी चाहिए ।
प्रा० प्र० १, २२९१
४७. जो आदमी अपना धर्म पालन करता है, धर्म ही उसका बदला
है।
प्रा० प्र० १, २४०
४८. धर्म अमर है । वह कभी बदल नहीं सकता ।
प्रा० प्र० ९, २३७
४९, हम दूसरों को कहें कि आप मेहरबानी करके हमारा धमं बचा
दें तो इस तरह धर्म बचता नहीं है । मेहरबानी से धर्म बचता है ? यदि
दम कहें कि हमारा धर्म बचाओ, तो वह धर्म का सौदा हुआ ।
प्रा०्प्र० १, ३८२
५०. धम्मं अपने दिल की बात है। इंसान जाने और उसका ईदवर
जाने ।
प्रा० प्र० ९; ४०६
५१. हम धमं-परिवतंन करने से तो मरना अच्छा समङ्गे ।
प्राण प्र० २, २४
५२. दुनिया के दूसरे लोग धर्म का पालन नहीं करते, इसलिए क्या
मैं भी धर्म का पालन न करूं |
प्रा० प्र० २,७५
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