विश्वभारती पत्रिका भाग - 44 | Vishvabharati Patrika Bhag - 44
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){न : वभारती पत्रिका
खण्डे, अंक १-४, चैत्र २०६० - फाल्गुन २०६०, अप्रैल २००३ - मार्च २००४
---~----------~ --~ गा न ~~~ ~~ ~ पडा
जन्मदिने (२९)
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
रक्तमाखा दन्तपेक्ति हिंस संग्रामेर
शत शत नगरग्रामेर
अन्त्र आज छिन्न छिन्न करे;
दुटे चले विभीषिका मूर्छातुर दिके दिगन्तरे ।
वन्या नामे यमलोक हते,
राज्यसाम्राज्येर बधि लुप्त करे सर्वनाशा स्रोते।
ये लोभ-रिपुरे
लये गे युगे युगे दूरे दुरे
सभ्य शिकारीर दल पोषमाना श्वपदेर मतो,
देशविदेशेर मांस करके विक्षत
लोललिद्वा सेड कुक्कुरेर दल
अन्ध हये छिड्ल शंखल
भुले गेल आत्मपर;
आदिम वन्यता तार उद्बारिया उदाम नखर
पुरातन एेतिहयेर पातागुला छिन्न करे,
फेले तार अक्षरे अक्षरे
पङ्कलिप्त चिहनेर विकार ।
असन्तुष्ट विधातार
ओरा दूत बुद्धि
शत शत वषेर पापेर पजि
छडाछडि करे देय एक सीमा हते सीमान्तरे,
राष्ट्रमदमत्तदेर मध्यभाण्ड चूर्ण करे
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