विश्वभारती पत्रिका भाग - 44 | Vishvabharati Patrika Bhag - 44

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Vishvabharati Patrika Bhag - 44  by रामेश्वर मिश्र - Rameshwar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{न : वभारती पत्रिका खण्डे, अंक १-४, चैत्र २०६० - फाल्गुन २०६०, अप्रैल २००३ - मार्च २००४ ---~----------~ --~ गा न ~~~ ~~ ~ पडा जन्मदिने (२९) - रवीन्द्रनाथ ठाकुर रक्तमाखा दन्तपेक्ति हिंस संग्रामेर शत शत नगरग्रामेर अन्त्र आज छिन्न छिन्न करे; दुटे चले विभीषिका मूर्छातुर दिके दिगन्तरे । वन्या नामे यमलोक हते, राज्यसाम्राज्येर बधि लुप्त करे सर्वनाशा स्रोते। ये लोभ-रिपुरे लये गे युगे युगे दूरे दुरे सभ्य शिकारीर दल पोषमाना श्वपदेर मतो, देशविदेशेर मांस करके विक्षत लोललिद्वा सेड कुक्कुरेर दल अन्ध हये छिड्ल शंखल भुले गेल आत्मपर; आदिम वन्यता तार उद्बारिया उदाम नखर पुरातन एेतिहयेर पातागुला छिन्न करे, फेले तार अक्षरे अक्षरे पङ्कलिप्त चिहनेर विकार । असन्तुष्ट विधातार ओरा दूत बुद्धि शत शत वषेर पापेर पजि छडाछडि करे देय एक सीमा हते सीमान्तरे, राष्ट्रमदमत्तदेर मध्यभाण्ड चूर्ण करे




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