रेखमितितत्व | Rekhamititatva
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीमन्महाराज द्विजराज - Shrimanmaharaj Dvijaraj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)02
रेखासितितत्व ^
कि
१० टणन्त ओग व्याबद्ाग्कि प्रयोग- रेखा, ज्यात् डां
सावल बांधकर स्थिर, वा समसमि-' त् _ { ।
जल के कपर लटका जावे, ता वह
रेखा जलपुर पर लेव हेविगी, इसी
हेतु से, सावल का समस्य नाम क श ते
यंच (प्रमेटलेबल ) बनाया जाता है,
यथा, व फ़ सावल रेखा, कारु पर कटी सय्ल रेखा पर ठीक २
लंब ेषे, तो खरल रेखा समस्य हेविगी,
पत्थर, ओर कारु, रकसे रखने मे, कमैकार जन मव्य
समस्य (स्पिरिंट लेबल ) से भी काम करते @, यह यंच,
जत, ख्व काचकी नली काहाताहै जञा
प्राय, मर्द के सार से री हती डय विन ल्ल त धि
प्राग, फलय, चाडटा, वा टेकन, , पर ८ =
रक्डी दातो, म शर न, सिरो प्रर
दार संवि र्कं दुसरे पर लंबद्धप हाती है, इस यंच के
काम में लाने के अथे, काई से एक सिरे को ऊंचा वा नीचा
क्रिया चाष्ठिये, जिस सं नलौके भीतर का वायवा बलतन।. टीक्ष ₹
नांच मे, ल, चिन्ह पर आजव, मरन
नली, समस्य हेविगी, आर, प फ, समस्य _ -------
ग्खा छ, न सन्धि के केन्द्र पर नेच निज ये
रखदार, ठरे के मेन्द्र मे देवार दिखने
सं समस्य रेखा ना चाह जहा त बढ़रला, कभी र दष
छट, क, मव्य, ननी के नीचे किया,जाता दै जैएा दस्त
आकृति में हे,
पी
1
५ ४ ¢
८
User Reviews
No Reviews | Add Yours...