श्री गीता जी | Shri Geeta Ji
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
स्थानों में निवास किया । मापने अपने वृद्ध पूज्य पिता महारान सुरतसिहजी की अहॉनिया
सेवा की तंथा उनके साथ चारों धाम, सप्तपुरी तथा म्रज यात्रा को थी । जव उन्होंने
(पित्ताभीने) श्री वृन्दावन धाम मं यहु भौतिक शरीर विसर्जन र्या उप्त समय भाप
वहाँ उनकी सेवा में ही तललीन थे । इसके वाद आप विभाण्डक के पुत्र श्रंगी कऋषि का चने
. जो उदयपुर से उत्तरः पूर्वं सोलह माइल की हरी पर अवस्थित है; वहीं पर नउवा
नामक ग्राम से कुछ दूर कुठी बनाकर रहने लगे । यहीं पर दि० सं० १९७८ पोष शुक्ला
तृतीया को -आापको आत्म साक्षात्कार हुआ । उसी स्थिति -्मे आपसे मलख पच्चीसो,
तुहिनाष्टक और अनुभव प्रकावा नामक पुस्तकें लिखी गईं ।
माप मेवाड़ी साहित्य के वात्मोकि थे; इस भाषा में अनेक प्रस्थों की रचना
करके से समृद्ध भौर गौरव श्चालिनौ वनाया । ये अपनो जागीर फलासिया की आमदनी
` “कतं से मनी सीमित आवदयकता पूति के अनुसार कुछ भाग रख कर, वाकी रकम अपने
प्रजा जन को किसी न किसी रूप में घितरित कर दिया करते थे । मापकी परिचर्या में
वैतनिक रूप में रत्ता, घनकुदा, उदचा, रूपा, कान्या आदि रहते थे मापने इनके नाम
पयो मे लगाकर इनको भी अमर कर दिया । आप आशु कवि होने फे साय साय
समस्या पूति बड़ रचिकर ढंग से करते थे । पातब्जल योग सूत्र आपको अत्यन्त प्रिय था,
इस पर आपने चार मेवाड़ी भाषा ओर एक खड़ी बोली में टीका लिखी मौर इस पांच
भौत्तिक शरीर को त्यागने के तीन दिन -पहले जव तक थोड़ी बहुत भी देह फो कित्ति रही
तव तकं लिखते ही रहै; उक्त योग सूत्र फो अन्तिम टीका शरीरान्त होजाने से अधूरी ही
। रह गई 1
पुज्य चरण चतुरसिंहजी के समकालीन महात्साओं में श्री सुदामाजी जिनका जन्म नाम
देवरामजी था, श्रीचिलपिलक्षाह्, श्री वलबन्तसिहनी भया साहव, श्रीनारायण स्वामी, पूज्या भूरी
वाई तथा श्री कीकाजी मादि फ नाम उल्लेखनीय हूं, जिनसे आपकी विज्ञेष आत्मीयता थी 1
रानणिजी ने वि. सं, १९६८६ आपाए कृष्णा नवमी के प्रातः नो वजे इस पांच भौतिक
नइवर शरीर को त्याग कर मनिवत्तंन घाम को प्राप्त किया । देह व्याग फे पुवं आयने एक
पद बनाया, जिसके अंतिम चरण इस प्रकार हूं :-
'्वतुर चोर चाकरी रे पण आखिर में अपणाय लियो ।
येही धारो काम कियो 11 यदि)
सहाराज श्री ने इस परम तत्व प्राप्ति को क्रियाओं को भक्ति, योग, सांख्य, ज्ञान, दर्योत,
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