श्री गीता जी | Shri Geeta Ji

Shri Geeta Ji by शोभालाल शास्त्री - Shobhalal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) स्थानों में निवास किया । मापने अपने वृद्ध पूज्य पिता महारान सुरतसिहजी की अहॉनिया सेवा की तंथा उनके साथ चारों धाम, सप्तपुरी तथा म्रज यात्रा को थी । जव उन्होंने (पित्ताभीने) श्री वृन्दावन धाम मं यहु भौतिक शरीर विसर्जन र्या उप्त समय भाप वहाँ उनकी सेवा में ही तललीन थे । इसके वाद आप विभाण्डक के पुत्र श्रंगी कऋषि का चने . जो उदयपुर से उत्तरः पूर्वं सोलह माइल की हरी पर अवस्थित है; वहीं पर नउवा नामक ग्राम से कुछ दूर कुठी बनाकर रहने लगे । यहीं पर दि० सं० १९७८ पोष शुक्ला तृतीया को -आापको आत्म साक्षात्कार हुआ । उसी स्थिति -्मे आपसे मलख पच्चीसो, तुहिनाष्टक और अनुभव प्रकावा नामक पुस्तकें लिखी गईं । माप मेवाड़ी साहित्य के वात्मोकि थे; इस भाषा में अनेक प्रस्थों की रचना करके से समृद्ध भौर गौरव श्चालिनौ वनाया । ये अपनो जागीर फलासिया की आमदनी ` “कतं से मनी सीमित आवदयकता पूति के अनुसार कुछ भाग रख कर, वाकी रकम अपने प्रजा जन को किसी न किसी रूप में घितरित कर दिया करते थे । मापकी परिचर्या में वैतनिक रूप में रत्ता, घनकुदा, उदचा, रूपा, कान्या आदि रहते थे मापने इनके नाम पयो मे लगाकर इनको भी अमर कर दिया । आप आशु कवि होने फे साय साय समस्या पूति बड़ रचिकर ढंग से करते थे । पातब्जल योग सूत्र आपको अत्यन्त प्रिय था, इस पर आपने चार मेवाड़ी भाषा ओर एक खड़ी बोली में टीका लिखी मौर इस पांच भौत्तिक शरीर को त्यागने के तीन दिन -पहले जव तक थोड़ी बहुत भी देह फो कित्ति रही तव तकं लिखते ही रहै; उक्त योग सूत्र फो अन्तिम टीका शरीरान्त होजाने से अधूरी ही । रह गई 1 पुज्य चरण चतुरसिंहजी के समकालीन महात्साओं में श्री सुदामाजी जिनका जन्म नाम देवरामजी था, श्रीचिलपिलक्षाह्‌, श्री वलबन्तसिहनी भया साहव, श्रीनारायण स्वामी, पूज्या भूरी वाई तथा श्री कीकाजी मादि फ नाम उल्लेखनीय हूं, जिनसे आपकी विज्ञेष आत्मीयता थी 1 रानणिजी ने वि. सं, १९६८६ आपाए कृष्णा नवमी के प्रातः नो वजे इस पांच भौतिक नइवर शरीर को त्याग कर मनिवत्तंन घाम को प्राप्त किया । देह व्याग फे पुवं आयने एक पद बनाया, जिसके अंतिम चरण इस प्रकार हूं :- '्वतुर चोर चाकरी रे पण आखिर में अपणाय लियो । येही धारो काम कियो 11 यदि) सहाराज श्री ने इस परम तत्व प्राप्ति को क्रियाओं को भक्ति, योग, सांख्य, ज्ञान, दर्योत,




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