सच्ची आज़ादी | Sachi Azadi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
131
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तन फ संयसः १५
यही कारण है कि उच्छृह्ुलता कौ क्रियाएं बहादुर मे नहीं
गिनी जातीं । शराव के नदो मे किये हृए कृत्य, चाहे वे विचारः
सम्बन्धी हो या देह-सम्बन्धी, ज्यादा मूल्यवान नहीं समझे जाने
चाहिए । कि
सराव का श्रसर मन पर बहत ज्यादा होता हं, यह् कट
कर हम यह कहना चाहते हैं कि उसका दिल फूल पर ।
दिल बड़ा हो जाता है । बुद्धि कुण्ठित हो जाती हैं । थोंड़े या
संयत न में कुण्ठित बुद्धि कभी-कभी कुशाग्र बुद्धि का काम
कर जाती है । पर उसे अपवाद ही मानना चाहिए । नियम
वना वैव्ना धोखे से खाली नहीं ह \ एक तरह से नदे की हालत
में दिल का बुद्धि से रिक्ता कट जाता हँ । यही वजह ह कि
शरावी अपना भृत भूल जाता हूँ । इसलिए उसका मन उच्छुद्धल
हो उठता है। तन को नियमानुसार उसका अनुकरण करना
पड़ता है । अ्नुकरण ही करना पड़ता है, कोई उत्साहपूर्ण क्रिया
वह् नहीं कर सकता, क्योकि मन तन की पूरी सहायता नहीं
करता । इसी कारण नशे मे तन की हृत्की-भारी सव क्रियाएं
वेजोड ओर् वेतुकी होती हँ । `.
नदो को छोडिये ! तन की श्रौर थी सूक्ष्म क्रियाएं हैं, जो
उच्छुज्ललता की कोटि में आती हैं, जो निरथेक और बेजोड
होती हे, पर वे ्ञानियों के वड़े काम आती हँ । सोचने-विचारने
मे बड़ी सहायक होती है । वे हानिकर न होने के कारण हेय
न भी हो, उपादेय नहीं कही. जा सकतीं । उदाहरण के तौर
पर व्यास्यान देते समय हाय में कागज का टुकड़ा लेकर उसे
चीरे जाना, चीरे जाना । इससे व्याख्यान .का सिलसिला तो
ठीक रहता है, पर अगर कोई उस व्याख्याता के हाथ से वह्
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