सच्ची आज़ादी | Sachi Azadi

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Sachi Azadi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तन फ संयसः १५ यही कारण है कि उच्छृह्ुलता कौ क्रियाएं बहादुर मे नहीं गिनी जातीं । शराव के नदो मे किये हृए कृत्य, चाहे वे विचारः सम्बन्धी हो या देह-सम्बन्धी, ज्यादा मूल्यवान नहीं समझे जाने चाहिए । कि सराव का श्रसर मन पर बहत ज्यादा होता हं, यह्‌ कट कर हम यह कहना चाहते हैं कि उसका दिल फूल पर । दिल बड़ा हो जाता है । बुद्धि कुण्ठित हो जाती हैं । थोंड़े या संयत न में कुण्ठित बुद्धि कभी-कभी कुशाग्र बुद्धि का काम कर जाती है । पर उसे अपवाद ही मानना चाहिए । नियम वना वैव्ना धोखे से खाली नहीं ह \ एक तरह से नदे की हालत में दिल का बुद्धि से रिक्ता कट जाता हँ । यही वजह ह कि शरावी अपना भृत भूल जाता हूँ । इसलिए उसका मन उच्छुद्धल हो उठता है। तन को नियमानुसार उसका अनुकरण करना पड़ता है । अ्नुकरण ही करना पड़ता है, कोई उत्साहपूर्ण क्रिया वह्‌ नहीं कर सकता, क्योकि मन तन की पूरी सहायता नहीं करता । इसी कारण नशे मे तन की हृत्की-भारी सव क्रियाएं वेजोड ओर्‌ वेतुकी होती हँ । `. नदो को छोडिये ! तन की श्रौर थी सूक्ष्म क्रियाएं हैं, जो उच्छुज्ललता की कोटि में आती हैं, जो निरथेक और बेजोड होती हे, पर वे ्ञानियों के वड़े काम आती हँ । सोचने-विचारने मे बड़ी सहायक होती है । वे हानिकर न होने के कारण हेय न भी हो, उपादेय नहीं कही. जा सकतीं । उदाहरण के तौर पर व्यास्यान देते समय हाय में कागज का टुकड़ा लेकर उसे चीरे जाना, चीरे जाना । इससे व्याख्यान .का सिलसिला तो ठीक रहता है, पर अगर कोई उस व्याख्याता के हाथ से वह्‌




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